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Mental Health Awareness Month : लोगों को हैं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े ये भ्रम, जानें कितनी है सच्चाई

मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के तहत आरोग्य इंडिया लगातार आपको मानसिक विकारों से रूबरू करवा रहा है। इसी कड़ी में आज हम मानसिक विकारों से जुड़े भ्रमों के बारे में बताएंगे। कभी-कभी कई कारणों के चलते व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है और अपनी इन समस्याओं के कारण उसे सामाजिक तौर पर भी काफी कुछ झेलना पड़ता है।

दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के मन में कई ऐसी धारणाएं या कहें कि भ्रम हैं जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए कई अन्य समस्याएं खड़ी कर देते हैं। बहुत से लोगों का ऐसा मानना है कि मानसिक बीमारी लाइलाज (कोई इलाज नहीं) होती है, लेकिन यह एक भ्रम से ज्यादा और कुछ नहीं है। दरअसल, अगर मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का समय रहते सही इलाज कराया जाए तो वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। बेशक मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उभरने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन मानसिक बीमारी का इलाज संभव है।

इनके अलावा भी समाज में मानसिक विकारों से जुड़े कई भ्रम हैं और इनके बारे में भी हम आपको विशेषज्ञ के माध्यम से ही बताएंगे। आरोग्य इंडिया के साथ जुड़ी हैं डॉ पारुल प्रसाद, उन्हीं से इन भ्रांतियों के बारे में जानते हैं और इस पर विस्तार से बात करते हैं।

डॉ पारुल प्रसाद के अनुसार, लोगों को सबसे बड़ा डर ये होता है कि हम पागलों के डॉक्टर के पास क्यों जायें, हम कोई पागल थोड़े हो गये हैं। आप लोगों को समझने की जरूरत है कि मेंटल हेल्थ कंडीशन किसी के भी साथ हो सकती है। अगर किसी को एंग्जायटी, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया जैसी दिक्कत होती है तो बिना किसी शर्मिंदगी, बिना किसी हिचक के डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

मानसिक विकारों के इलाज को लेकर लोगों के दिमाग में रहते हैं कई भ्रम

डॉ पारुल बताती हैं कि हमारे पास ऐसे कई पेशेंट आते हैं जो बोलते हैं कि क्या ये दवा जिंदगी भर चलेगी, हमने सुना है कि अगर एक बार ये दवा शुरू हो जाये तो लंबे समय तक चलती है। तो इस बारे में आपको बता दूं कि ये बहुत बड़ा मिथ है क्योंकि मेंटल इलनेस कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है। इसका ये अंब्रेला टर्म हैं जिसके अंदर हजारों बीमारियां आती हैं। किसी को एंग्जायटी है, किसी को बाइपोलर है, किसी को डिप्रेशन हैं, ओसीडी है, बाइपोलर है। हर बीमारी के लिए ट्रीटमेंट का ड्यूरेशन होता है, अलग-अलग बीमारी के लिए अलग-अलग दवायें रहती हैं।

मानसिक बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों को लेकर कई तरह की धारणा हैं

समस्या तब आती है जब एक पेशेंट मेडिसिन का पर्चा ले जाता है। उसके बाद 6-7 महीने या एक साल तक डॉक्टर को फॉलोअप नहीं लेता है। ऐसे में जो दवा हम कम करने वाले थे या बंद करने वाले थे वो लगातार लेता रहता है। ऐसी कंडीशन में पेशेंट की कुछ स्लीपिंग पिल्स रहती हैं जो बेंजो डाइडन लोग यूज करते हैं उनकी आदत सी पड़ जाती है। तो ये बहुत बड़ा मिथ है कि दवाइयों की आदत लग जाती है।

मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के मौके पर डॉ पारुल प्रसाद ने लोगों से की अपील

इस मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के मौके पर डॉ पारुल प्रसाद ने संदेश दिया है कि अगर आपके आसपास किसी को भी कोई मानसिक बीमारी है तो बिना किसी हिचक के अपने साइकेट्रिस्ट को जरूर दिखायें। साइकेट्रिस्ट के द्वारा जो भी ट्रीटमेंट दिया जाता है उसको फॉलोअप जरूर करें। जिससे आप और आपके आसपास वालों की लाइफ सुखद रहे।

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