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Mental Health Awareness Month : Depression को न समझे मामूली, ये लील लेगा आपकी जिंदगी

अवसाद और तनाव आज के दौर में एक गंभीर बीमारी बन चुकी है। डिप्रेशन की समस्या लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। डिप्रेशन यानी अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है जो चिंता और मूड में बदलाव का कारण बन सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, सभी लोगों को अवसाद के जोखिमों को लेकर ध्यान देते रहना और इससे बचाव करना बहुत आवश्यक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के विशेषज्ञों के मुताबिक, दुनियाभर में हर चार में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। समय के साथ यह जोखिम और भी बढ़ता जा रहा है, विशेष तौर पर कोरोना महामारी के दौरान की नकारात्मक परिस्थितियों ने इस जोखिम को और भी बढ़ा दिया है।

इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे डिप्रेशन यानी अवसाद के बारे में और विशेषज्ञ के रूप में अरोग्याय इंडिया प्लेटफोर्म से जुड़ी हैं क्लिनिकल साईकोलोजिस्ट अस्स्था शर्मा। उनसे जानेंगे कि आखिर अवसाद क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, इसका इलाज क्या है और कैसे इससे बचा जा सकता है?

चिंता की बात ये है कि इस दौर में बच्चे भी अवसाद का शिकार हो रहे हैं, एक स्टडी में यह माना गया है। इसके बारे में आस्था शर्मा का क्या कहना है, चलिए जानते हैं।

डिप्रेशन या अवसाद एक डर होता है इसमें आपका मन बहुत विचलित होता है। इसके मुख्य लक्षण हैं बहुत ज्यादा उदास होना, किसी काम में मन न लगना, किसी काम के प्रति रुचि खत्म हो जाना, बहुत नींद लगना, भूख ज्यादा लगना या कम लगना। कुछ मामलों में संभोग की इच्छा में कमी होना, कहीं-कहीं खुद को खत्म करने की इच्छा पैदा हो जाती है। कोविड के बाद तो ये बढ़ा ही है लेकिन कोविड के पहले भी ये बीमारी लोगों में देखी जाती थी।

डिप्रेशन का इलाज कैसे होता है?

ये बीमारी बच्चों में भी होती है पर बड़े लोग इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। डॉक्टर आस्था शर्मा बताती हैं कि मैंने अपनी प्रैक्टिस में छह साल के बच्चे में भी अवसाद के लक्षण देखे हैं। बच्चों और बड़ों में अवसाद के बिल्कुल अलग होते हैं। बड़े लोगों में अवसाद उदासी के रुप में होता है, वे किसी को खुलकर ये बता पाते हैं कि वे उदास हैं। लेकिन बच्चों की भाषा सीमित होती है, उनमें अवसाद के लक्षण शारीरिक कस्टम्स के रुप में दिखाई देते हैं जैसे- पेट दर्द बना हुआ है, रोना, चिड़चिड़ापन, स्कूल जाने का मन न करना, पढ़ाई में मन न लगना।

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