मां बनने का Dream जानलेवा, ये रोग Maternal Death का कारण

भारत में संक्रमण और अत्यधिक रक्तस्राव के अलावा हृदय रोग भी मैटरनल डेथ का कारण है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के शोधकर्ता हृदय रोगों से जुड़े मैटरनल डेथ के मामलों का डेटा तैयार करने और स्वास्थ्य संबंधी चिंता से निपटने के लिए शोध की तैयारी कर रहे हैं।
किसी महिला की गर्भावस्था के दौरान बीमारी या प्रसव के 42 दिन बाद मौत को मैटरनल डेथ कहा जाता है। इसका खतरा ग्रामीण इलाकों में ज्यादा होता है, क्योंकि वहां प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का अभाव होता है।
चार साल पहले के एक शोध के मुताबिक पिछले दो दशक में भारत में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 70 फीसदी घटी है, फिर भी मैटरनल डेथ के मामले चिंता का विषय बने हुए हैं। शरीर में कई चयापचय बदलाव के कारण गर्भावस्था में हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के पहले आठ हफ्ते में महिलाओं में महत्त्वपूर्ण हृदय संबंधी परिवर्तन होते हैं। लैंसेट के शोध के मुताबिक हार्ट फेलियर का जोखिम 24 हफ्ते तक लगातार बढ़ता है। यह 30 हफ्ते में स्थिर होता है और प्रसव के आसपास फिर चरम पर पहुंच जाता है।
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क्या हैं गर्भावस्था में हृदय रोग के कारण
विशेषज्ञों के मुताबिक प्रेगनेंसी, दिल और रक्त वाहिकाओं को ज्यादा काम करने पर मजबूर करती है। गर्भावस्था के दौरान बढ़ते बच्चे को पोषण देने के लिए रक्त की मात्रा 30 से 50 फीसदी तक बढ़ जाती है। ऐसे में दिल हर मिनट ज्यादा रक्त पंप करता है। इससे हार्ट रेट बढ़ जाती है। डिलीवरी के दौरान ब्लड फ्लो और ब्लड प्रेशर में अचानक बदलाव होते हैं। गर्भावस्था के दौरान मेटाबॉलिज्म और शरीर में अन्य बदलाव के कारण हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
शोध पर खर्च होंगे आठ करोड़
आइसीएमआर हृदय रोगों के कारण होने वाली मैटरनल डेथ की संख्या जानने और भविष्य में मृत्यु दर को रोकने के लिए ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए जो शोध करेगा, उस पर आठ करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसमें 50 केंद्रों और एम्स को शामिल किया जाएगा। शोध में ऐसी गर्भवती महिलाओं की पहचान की जाएगी, जो हृदय रोगों से पीड़ित हैं।