अभी हाल ही में एक खबर आई थी कि अमेरिका में सूअर की किडनी को एक इंसान में लगाया गया और यह इंसान पूरी तरह स्वस्थ्य है. इस सफल प्रत्यारोपण के बाद अब वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल पैंक्रियाज बनाने का दावा किया है. यह पैंक्रियाज टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों के लिए जीवनदायी साबित हो सकता है. टाइप 1 डायबिटीज के मरीज को रोजाना इंसुलिन लेना होता है.
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा ने दावा किया है कि टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों के लिए हाइब्रिड क्लोज्ड लूप सिस्टम पर आधारित आर्टिफिशयल पैंक्रियाज बनाया गया है जो हजारों लोगों के जीवन को नई दिशा दे सकता है. अब एनएचस यानी नेशनल हेल्थ सर्विस के डॉक्टर इस आर्टिफिशियल पैंक्रियाज को लगाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति की पहचान कर रहा है. बहुत जल्द इसे किसी इंसान में लगाया जाएगा.
शुगर मैनेज करने में सहूलियत
दरअसल, इस सिस्टम में ग्लूकोज सेंसर को स्किन के नीचे लगा दिया जाएगा जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि पंप के माध्यम से कितना इंसुलिन पास हुआ. एक्सपर्ट का कहना है कि यह टेक्नोलॉजी टाइप 1 डायबिटीज के उन मरीजों के बेहद फायदेमंद साबित होगा जिनका ब्लड शुगर बहुत जल्दी और तेजी से ऊपर-नीचे हो जाता है. इससे मौत का खतरा बढ़ जाता है.
Also Read – IVF ही क्यों IVM करायें वो भी कम खर्चे में, पहले जान लें दोनों में अंतर
एक्सपर्ट का कहना है कि यदि इस क्लोज्ड लूप सिस्टम को लंबे समय तक लगाके रखा गया तो बाद में मरीज का शरीर अपने आप ब्लड शुगर को मैनेज करने में सफल हो जाएगा. इससे हार्ट डिजीज, आंखों की दिक्कत और किडनी की समस्याओं का रिस्क कम हो सकता है.
कुछ सालों में तैयार होगी टेक्नोलॉजी
एनएचएस में डायबिटीज के एडवाइजर प्रोफेसर पार्थ केर ने बताया कि भविष्य की यह टेक्नोलॉजी न सिर्फ मेडिकल केयर को बेहतर बनाएगा बल्कि जो लोग डायबिटीज के मरीज हैं उनके जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बना देगा. पिछले साल दिसंबर में एनएसएस ने इस आर्टिफिशियल पैंक्रियाज पर काम करने की मंजूरी दी थी.
अब इस प्रयोग को आगे बढ़ाया जा रहा है. उम्मीद है कि यह टेक्नोलॉजी अगले कुछ सालों में तैयार हो जाएगी जिसके बाद लाखों लोगों को इसका फायदा मिल सकता है. फिलहाल यह टाइप 1 डायबिटीज के कुछ खास तरह के मरीजों में आजमाया जाएगा जिनका एचबीए1सी 58 या इससे ज्यादा है. टाइप 1 डायबिटीज अमूमन किशोरों में होता है. इसमें इंसुलिन बनता ही नहीं, इस कारण रोजाना इंसुलिन लेना पड़ता है. इसलिए यह टेक्नोलॉजी ऐसे मरीजों के लिए रामबाण साबित हो सकता है.