आपने सुना होगा “आंखों की रोशनी छीनने वाला चोर”, जी हां, वह है ग्लूकोमा. ये आंखों की एक बीमारी है जो धीरे-धीरे बढ़ती है और आखिर में अंधेपन का कारण बन सकती है. इसमें आंखों की नस खराब हो जाती है, जिससे धीरे-धीरे दिखाई कम होती जाती है. शुरुआत में ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं होते. इसलिए कई बार इसका पता ही नहीं चलता और जब तक पता चलता है, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है. इसीलिए डॉक्टर कहते हैं कि धुंधला दिखाई देने पर भी आंखों का चेकअप करवा लेना चाहिए.
हर साल जनवरी में ग्लूकोमा जागरूकता महीना होता है. इस मौके पर यह जानना जरूरी है कि भारत में लगभग 120 लाख लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, और इनमें से 40-50% तक के मामलों का पता ही नहीं चल पाता. ग्लूकोमा 60 साल से ऊपर के लोगों में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है.
कैसे पहचानें ग्लूकोमा के लक्षण?
खुले कोण वाला ग्लूकोमा
इसमें शुरुआत में कोई लक्षण नहीं होते, पता सिर्फ आंखों की जांच के दौरान ही चलता है. बाद में आंखों में भारीपन, सिरदर्द, चश्मे का नंबर बार-बार बदलना या आंखों के कुछ हिस्सों में न दिखाई देना जैसे लक्षण दिख सकते हैं.
संकीर्ण कोण वाला ग्लूकोमा
इसमें अचानक तेज दर्द, आंखों का लाल होना, सिरदर्द या लाइट के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखाई देना जैसे लक्षण हो सकते हैं. ये लक्षण शाम के समय या कम रोशनी में ज्यादा होते हैं क्योंकि पुतली फैल जाती है, जिससे आंखों से पानी निकलने का रास्ता बंद हो जाता है और अंदर का दबाव बढ़ जाता है.
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जन्मजात ग्लूकोमा
इसमें बच्चे के जन्म से ही आंखों से पानी निकलने के रास्ते ठीक से नहीं बने होते हैं. इससे आंखों का दबाव बढ़ जाता है, जिससे कॉर्निया धुंधला हो सकता है और आंख बड़ी हो सकती है. ऐसे बच्चों को तुरंत इलाज करवाना चाहिए.
ग्लूकोमा का खतरा किसे ज्यादा होता है?
- आंखों में चोट लगने पर
- स्टेरॉयड लेने वालों को
- डायबिटीज वाले लोगों को
- थायराइड की बीमारी वाले लोगों को
- जिनके परिवार में ग्लूकोमा हो चुका है
- नज़र कमजोर होने वालों को (चश्मा लगाने वालों को)
- आंखों की दूसरी बीमारियां जैसे यूवाइटिस, विट्रियस हेमरेज या कोई बड़ा ऑपरेशन होने पर
ग्लूकोमा का इलाज
- ग्लूकोमा का इलाज आंखों का दबाव कम करके किया जाता है.
- इसके लिए आंखों की दवाइयां, लेजर ट्रीटमेंट या सर्जरी की जा सकती है.
- अगर आपको आंखों में कोई परेशानी है तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करें.