थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम होती है। हीमोग्लोबिन एक विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है, जिसकी मदद से ऑक्सीजन रक्त में मिलकर शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंच पाती है। थैलेसीमिया में लाल रक्त कोशिकाएं गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, जिससे एनीमिया हो जाता है। यदि बच्चे के माता या पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो बच्चे को भी यह विकार हो सकता है। हालांकि, यदि दोनों में से किसी को यह रोग नहीं है, तो भी जीन में कुछ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) होने के कारण यह रोग हो सकता है।
थैलेसीमिया के प्रकार
- अल्फा थैलेसीमिया- अल्फा ग्लोबिन प्रोटीन से संबंधित जीन न होना या उसमें किसी प्रकार की म्यूटेशन होना अल्फा थैलेसीमिया का कारण बनती है। थैलेसीमिया का यह प्रकार अधिकतर चीन व अफ्रीका के लोगों में पाया जाता है।
- बीटा थैलेसीमिया- बीटा ग्लोबिन प्रोटीन बनने की क्रिया को नियंत्रित करने वाली जीन में म्यूटेशन होना थैलेसीमिया का कारण बन सकता है। भारत में अधिकतर बीटा थैलेसीमिया के मामले पाए जाते हैं। इसके अलावा अमेरिका, चीन व अफ्रीका में भी बीटा थैलेसीमिया के काफी मामले पाए जाते हैं।
थैलेसीमिया के लक्षण
- हड्डियों में विकृति हो जाना
- गहरे रंग का पेशाब आना
- शारीरिक विकास अपेक्षाकृत धीमी गति से होना
- अत्यधिक थकान व सुस्ती रहना
- त्वचा का रंग पीला पड़ना
- मांसपेशियों में कमजोरी
इसके अलावा थैलेसीमिया के प्रकारों के अनुसार भी इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। अल्फा थैलेसीमिया में अक्सर कोई लक्षण विकसित नहीं होता है, क्योंकि इसमें हीमोग्लोबिन की कार्यक्षमता इतनी प्रभावी नहीं होती है। हालांकि बीटा थैलेसीमिया में निम्न लक्षण हो सकते हैं –
- एनीमिया
- भूख न लगना
- हृदय, लीवर या स्प्लीन बढ़ना
- हड्डियां कमजोर पड़ना
यदि आपको निम्न में से कोई भी लक्षण महसूस होता है या फिर आपके परिवार में किसी को थैलेसीमिया है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए।
थैलेसीमिया के कारण
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है, जिसमें कुछ विशेष गुणसूत्रों (जीन) में बदलाव (म्यूटेशन) आ जाते हैं और वे सामान्य रूप से काम नहीं कर पाते हैं। हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंचाने में इन जीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हीमोग्लोबिन दो अलग-अलग यूनिट से मिलकर बनती हैं, जिन्हें अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन के नाम से जाना जाता है।
जब आपके माता-पिता में से किसी को भी थैलेसीमिया है, तो आपको भी माइनर थैलेसीमिया हो सकता है जिसमें आमतौर पर कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है। यदि माता और पिता दोनों को थैलेसीमिया है, तो आप में थैलेसीमिया के गंभीर लक्षण हो सकते हैं।
थैलेसीमिया के जोखिम कारक
जैसा कि हम आपको ऊपर बता चुके हैं, थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है। इसलिए परिवार में पहले किसी अन्य व्यक्ति को यह रोग होना ही इसका सबसे बड़ा जोखिम कारक है। इसके अलावा अफ्रीकी, ग्रीक, इतालवी, मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को थैलेसीमिया होने का खतरा अपेक्षाकृत अधिक हो सकता है।
Also Read – पेट का यह दर्द देता है पित्त में पथरी होने का संकेत, क्या है इसका इलाज?
थैलेसीमिया की रोकथाम
अन्य अनुवांशिक रोगों की तरह थैलेसीमिया की रोकथाम करना भी संभव नहीं है। यदि आपको या आपके जीवनसाथी को थैलेसीमिया है, तो आपकी होने वाली संतान को यह रोग होने का खतरा रहता है। हालांकि, कुछ नई तकनीकों पर रिसर्च भी चल रही हैं, जिनकी मदद से भ्रूण के जीन में होने वाले बदलाव पर विशेष रूप से नजर रखी जाती है।
थैलेसीमिया की जांच
थैलेसीमिया के कुछ गंभीर मामलों में बच्चा एक या दो साल का होते ही उसके शरीर में लक्षण विकसित हो जाते हैं, जिनके अनुसार स्थिति का निदान कर लिया जाता है। हालांकि, यदि थैलेसीमिया से कोई लक्षण पैदा नहीं हुआ है, तो बच्चे का जब भी ब्लड टेस्ट किया जाता है तो इस स्वास्थ्य समस्या का पता लग जाता है। यदि बच्चे के माता या पिता को थैलेसीमिया है, तो बच्चे में इस विकार की जांच करने के लिए निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं –
- कंप्लीट ब्लड काउंट
- लाल रक्त कोशिकाओं का माइक्रोस्कोप एनालिसिस
- हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस
- म्यूटेशन एनालिसिस
- जेनेटिक टेस्टिंग
थैलेसीमिया का इलाज
थैलेसीमिया का इलाज रोग की गंभीरता, मरीज को हो रही स्वास्थ्य समस्याएं और अन्य लक्षणों के अनुसार किया जाता है। थैलेसीमिया के इलाज में प्रमुख रूप से निम्न ट्रीटमेंट शामिल हैं –
Also Read – मुंह से बदबू आना इन गंभीर बीमारियों का देता है संकेत
ब्लड ट्रांसफ्यूजन – जिन लोगों को थैलेसीमिया गंभीर रूप से हो चुका है, उनका इलाज करने के लिए प्रमुख रूप से रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया को इस्तेमाल में लाया जाता है। इसमें मरीज को हर दो से तीन हफ्तों में रक्त चढ़ाना पड़ता है, जिससे उसके शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को कम होने से रोका जाता है।
आयरन किलेशन थेरेपी – बार-बार रक्त चढ़ाने से शरीर में आयरन का स्तर बढ़ जाता है, जिसे आयरन ओवरलोड कहा जाता है। आयरन बढ़ने से शरीर के अंदरूनी अंग क्षतिग्रस्त होने लग जाते हैं, जिनमें हृदय व लीवर भी शामिल हैं। इस स्थिति का इलाज करने के लिए मरीज को विशेष दवाएं दी जाती हैं, जिनकी मदद से अतिरिक्त आयरन को पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
इसके अलावा मरीज को स्वास्थ्यकर आहार व अन्य सप्लीमेंट (जैसे फोलिक एसिड) आदि भी दिए जाते हैं, ताकि शरीर को स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं बनाने में मदद मिले।
थैलेसीमिया की जटिलताएं
यदि थैलेसीमिया की स्थिति गंभीर हो जाती है, तो इससे शरीर का कोई अंग स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है और कुछ मामलों में मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा थैलेसीमिया से निम्न जटिलताएं हो सकती हैं –
- शरीर में आयरन सामान्य से अधिक होना
- हड्डियों में विकृति होना
- शारीरिक विकास धीमा होना
- स्प्लीन का आकार बढ़ना
- हृदय संबंधी समस्याएं होना
हालांकि, उपरोक्त जटिलताएं विशेष परिस्थितियों में विकसित होती हैं और ऐसा जरूरी नहीं है कि इस रोग से ग्रस्त सभी लोगों को यह समस्याएं हों।