जले हुए स्थान पर बर्फ रगड़ने या टूथपेस्ट लगाने की आम आदत सही नहीं है। इसके लिए जले हुए स्थान को बहते पानी के नीचे तब तक रखना बेहतर होता है जब तक दर्द बंद न हो जाए।
यह बात किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में सोसाइटी फॉर वाउंड केयर एंड रिसर्च द्वारा आयोजित किए जा रहे चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम वाउंडकॉन 2024 में मौजूद विशेषज्ञों ने बताई।
जलने पर क्या करें?
केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के फैकल्टी मेंबर प्रोफेसर बृजेश मिश्रा के अनुसार, बर्फ से रगड़ना और जले पर टूथपेस्ट या तेल लगाना भले ही आम उपाय लगते हैं, लेकिन ये वास्तव में फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं।
बर्फ रगड़ना और टूथपेस्ट लगाना क्यों हानिकारक?
मिश्रा ने समझाया, “बर्फ त्वचा को जमा सकता है और रक्त प्रवाह को रोक सकता है, जबकि टूथपेस्ट में कैल्शियम और पुदीना जैसे कठोर पदार्थ होते हैं जो जलन को खराब कर सकते हैं और तेल गर्मी को रोक लेता है, जिससे जलन को ठंडा करना मुश्किल हो जाता है।” उन्होंने चेतावनी दी कि ये तरीके संक्रमण के खतरे को बढ़ा देते हैं।
जलने पर प्राथमिक उपचार कैसे करें
केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विजय वर्मा ने सलाह दी, “सबसे अच्छा तरीका है कि प्रभावित जगह को बहते पानी के नीचे धोया जाए, ताज़े बिस्तर की चादर से ढंका जाए और गंभीर जलने की स्थिति में तुरंत चिकित्सा सहायता लें। घायल त्वचा, मांसपेशियों और ऊतकों को ठीक करने के लिए हाइड्रेशन और प्रोटीन का सेवन बढ़ाना महत्वपूर्ण है। बिजली के झटके से होने वाली जलन के लिए एक बाँझ पट्टी या साफ कपड़े का प्रयोग करें; रेशों को जली हुई त्वचा से चिपकने से रोकने के लिए कंबल या तौलिये से बचें।”
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एक अन्य प्लास्टिक सर्जन डॉ. के.एस. मूर्ति ने जले हुए घावों को भरने में मछली की त्वचा के उत्पादों की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “ओमेगा वसा और फैटी कोलेजन एसिड से भरपूर मछली की त्वचा के उत्पाद अब शुद्ध रूपों में उपलब्ध हैं। घावों पर लगाने पर ये बेहतर परिणाम दिखाते हैं।”
बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी
भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एक गंभीर बीमारी तेजी से बढ़ रही है, जिसको डॉक्टर “अनिर्धारित इम्यूनोडिफीसिअन्सी” कहते हैं। इसका मतलब है कि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है।
हर साल 22 से 29 अप्रैल को विश्व प्राथमिक इम्यूनोडिफीसिअन्सी सप्ताह मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करना है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि जागरूकता की कमी और इलाज की सुविधाओं के अभाव में ये बीमारी तेजी से बढ़ रही है। साथ ही रिश्तेदारी में शादी करने वाली कम्युनिटीज में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है।
अगर आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है और उसे बार-बार एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पड़ती है, तो यह इस बीमारी का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से जरूर संपर्क करें। जल्दी पता चलने पर इसका इलाज किया जा सकता है।