Teeth Whitening: आजकल के बीजी लाइफस्टाइल और समय का आभाव कारण दैनिक दिनचर्या के कई कार्य प्रभावित होते हैं. उन्हीं कार्यों में से एक है दांतों की सफाई. कई लोग सुबह-शाम ब्रश करते हैं तो उनके दांत हमेशा चमकते रहते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास ब्रश करना का ज्यादा टाइम नहीं होता है और वे बस खानापूर्ती करते हैं. इसी वजह से होता है दांतों में पीलापन. ये बहुत ही आम समस्या.
कुछ इससे निपटने के लिए एक घरेलू नुस्ख़ा अपनाते हैं. सरसों के तेल में थोड़ा-सा नमक डालकर दांतों पर रगड़ते हैं. लेकिन ये कोई परमानेंट सॉल्यूशन तो है नहीं. कई लोगों के दांत दिन में दो बार ब्रश करने के बाद भी पीले दिखते हैं. ऐसा क्यों होता है? ये समझेंगे. साथ ही बात होगी ‘टीथ व्हाइटनिंग’ पर. आजकल इसके बड़े चर्चे हैं.
इन दिनों चर्चा में है ‘टीथ व्हाइटनिंग’ | Teeth Whitening
ज्यादातर लोग सफ़ेद और चमकते दांतों के लिए ‘टीथ व्हाइटनिंग’ करवा रहे हैं. ये क्या है और इसे कैसे किया जाता है. जानेंगे. ये भी जानेंगे कि क्या इससे दांतों को कोई नुकसान पहुंचता है.
दांतों के पीले पड़ने की वजह क्या है? | Teeth Whitening
दांतों के पीले पड़ने या उनका रंग बदलने के कई कारण होते हैं. सबसे अहम कारण तंबाकू और सिगरेट है. ये दांतों पर दाग छोड़ते हैं. चाय, कॉफी और रेड वाइन जैसी चीज़ों से भी दांतों का रंग बदल जाता है. कई बार दांतों की नियमित सफाई न करने से प्लाक (दांतों की सतह पर चिपचिपी परत) जम जाता है. ये प्लाक धीरे-धीरे दांतों को पीला कर देता है. इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ-साथ दांतों की बाहरी परत ‘इनेमल’ पतली हो जाती है. इस वजह से अंदर की पीली परत ‘डेंटीन’ दिखाई देने लगती है. कुछ दवाइयां खाने और फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से भी दांत पीले हो जाते हैं.
‘टीथ व्हाइटनिंग’ क्या है? | Teeth Whitening
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो टीथ व्हाइटनिंग एक कॉस्मेटिक प्रक्रिया है. इसका काम दांतों के रंग को हल्का और सफ़ेद बनाना है. इसमें दांतों पर एक खास जेल लगाया जाता है. ये ब्लीचिंग एजेंट होता है. इसमें हाइड्रोजन पेरोक्साइड और कार्बामाइड पेरोक्साइड होता है. ये जेल दांतों की सतह पर जमे दाग-धब्बों को तोड़ता है और उन्हें सफ़ेद करता है.
ये प्रक्रिया दो तरीकों से की जाती है. पहला, डेंटिस्ट के क्लीनिक में प्रोफेशनल तरीके से. दूसरा, घर पर किट के ज़रिए. इसका असर कुछ महीनों तक रहता है. विशेषज्ञ हमेशा सलाह देते हैं कि अगर डॉक्टर की क्लीनिक में प्रोफेशनल तरीके से टीथ व्हाइटनिंग की जाए तो साइड इफेक्ट्स या दूसरी परेशानियां होने का चांस कम रहता है.
सेंसेटिविटी का कारण बन सकती है ‘टीथ व्हाइटनिंग’ | Teeth Whitening
टीथ व्हाइटनिंग सुरक्षित है. हालांकि, इससे कुछ मामूली समस्याएं भी हो सकती हैं. व्हाइटनिंग प्रक्रिया के बाद कई लोगों को दांतों में थोड़ी देर के लिए सेंसेटिविटी महसूस हो सकती है. खासकर तब, जब वो कुछ ठंडा या गर्म खाते हैं. अगर व्हाइटनिंग जेल मसूड़ों पर लग जाए, तब मसूड़े में भी जलन हो सकती है. लंबे समय तक या ज़्यादा व्हाइटनिंग कराने से दांतों की बाहरी परत ‘इनेमल’ कमज़ोर हो सकती है. इससे दांत भी कमज़ोर हो सकते हैं. टीथ व्हाइटनिंग हमेशा किसी प्रोफेशनल की देख-रेख में या निर्देशों के अनुसार ही कराएं. ताकि दांतों को किसी भी गंभीर नुकसान से बचाया जा सके.
‘टीथ व्हाइटनिंग’ के बजाय कैसे रखें अपने दांतों को सफ़ेद | Teeth Whitening
अपने दांतों को रोज़ दिन में कम से कम दो बार अच्छे टूथपेस्ट और ब्रश से साफ करें. ब्रश करने के बाद फ्लॉस करें ताकि दांतों के बीच के कण साफ हो जाएं. चाय, कॉफी जैसी चीज़ों को पीने के बाद पानी पिएं या कुल्ला करें. तंबाकू और सिगरेट से परहेज़ करें. ये दांतों को पीला करते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार इनकी वजह से कैंसर भी हो जाता है. साथ ही, चीनी कम करें. ऐसी चीज़ें न खाएं जो दांतों पर चिपकें. छह महीने या एक साल में डेंटिस्ट से अपनी जांच ज़रूर कराएं.
आपको भी होना होगा जागरूक | Teeth Whitening
आपको टूथपेस्ट खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है. आपके टूथपेस्ट में दो तरह के पदार्थ ज़रूर होने चाहिए. पहला, डेंटल फाइसिस. ये बारीक कण हैं जो पॉलिशिंग के काम आते हैं. साथ ही, दांतों पर जमा प्लाक को हटाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. दूसरा फ्लोराइड है. इंडियन डेंटल असोसिएशन या अमेरिकन डेंटल असोसिशन ने फ्लोराइड की जो मात्रा टूथपेस्ट में बताई है, वो उसमें होनी चाहिए. फ्लोराइड दांतों की बाहरी परत इनेमल को मज़बूत करता है और कैविटी होने से बचाता है.
कुछ टूथपेस्ट में दवा भी मिलाई जाती है. दवा वाला टूथपेस्ट अपने डेंटिस्ट की सलाह के बाद ही इस्तेमाल करें. अपने आप कभी भी मेडिकेटेड टूथपेस्ट का इस्तेमाल न करें. वरना काफ़ी नुकसान हो सकता है.