पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हृदय रोग का पता कम चल पाता है. एक नए अध्ययन के अनुसार, मशीन लर्निंग का उपयोग कर महिलाओं के लिए एक खास मॉडल बनाया गया है जिससे इस समस्या को दूर किया जा सकता है. साथ ही इससे इलाज भी बेहतर हो सकता है. पुरुषों और महिलाओं के दिल में थोड़ा अंतर होता है. महिलाओं का दिल छोटा होता है और उसकी दीवारें पतली होती हैं. लेकिन अब तक हृदय रोग पहचानने के तरीके दोनों के लिए एक जैसे ही थे.
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इससे महिलाओं में बीमारी का पता चलने में समय लगता है. खासकर “फर्स्ट-डिग्री एट्रियोवेंट्रिकुलर ब्लॉक (एवी ब्लॉक)” नाम की दिल की धड़कन से जुड़ी बीमारी और “डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी” नाम की दिल की मांसपेशियों की बीमारी महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले क्रमश: दोगुना और 1.4 गुना ज्यादा होती है, लेकिन उनका पता नहीं चल पाता.
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अध्ययनकर्ताओं में से एक स्काईलर सेंट पियरे का कहना है कि “वर्तमान जांच के तरीके महिलाओं में बीमारी का सही पता नहीं लगा पाते हैं. अगर महिलाओं के लिए अलग जांचें हों तो बीमारी का पता चलने में देरी की समस्या कम हो सकती है.” उन्होंने ये भी बताया कि हृदय रोग का पता लगाने के लिए सबसे अच्छा टेस्ट इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) है.
अध्ययनकर्ताओं ने हृदय रोग के खतरे का पता लगाने के लिए नए मॉडल बनाने के लिए फ्रामिंघम रिस्क स्कोर के साथ-साथ चार और जांचों को शामिल किया. फ्रामिंघम रिस्क स्कोर उम्र, लिंग, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर के आधार पर हृदय रोग का खतरा बताता है.
अध्ययनकर्ताओं ने ब्रिटेन के बायोबैंक के 20,000 से ज्यादा लोगों के डाटा का इस्तेमाल किया. इन सभी लोगों ने ऊपर बताई गई चारों जांचें करवाई थीं. मशीन learning की मदद से अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ईसीजी दोनों महिलाओं और पुरुषों में हृदय रोग का पता लगाने का सबसे कारगर तरीका है. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि पहले से किए जाने वाले टेस्ट कम महत्वपूर्ण हैं.
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि “सबसे पहले लोगों की सामान्य जोखिम कारकों के आधार पर जांच की जानी चाहिए. फिर ज्यादा जोखिम वाले लोगों के लिए ईसीजी टेस्ट किया जा सकता है.”