हैदराबाद के बाथिनी परिवार की तरफ से हर साल दमा और सांस लेने संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए “मछली प्रसाद” का आयोजन किया जाता है। इस साल ये प्रसाद 8 जून से 9 जून के बीच बांटा जाएगा। परिवार ने बताया है कि प्रसाद वितरण सुबह 11 बजे से शुरू होगा और अगले दिन सुबह 11 बजे तक चलेगा। इसका कार्यक्रम स्थल Exhibition Grounds, Nampally है।
बाथिनी मृगशिरा ट्रस्ट के अध्यक्ष बाथिनी विश्वनाथ गौड़ ने बताया कि वे मछली प्रसाद के वितरण के लिए सभी तैयारियां कर रहे हैं। हर साल जून में तेलुगु राज्यों और देश के अन्य हिस्सों से आने वाले दमा के मरीज इस प्रसाद को लेते हैं, उम्मीद करते हैं कि इससे उन्हें सांस लेने में तकलीफ से राहत मिलेगी। परिवार ने संबंधित सरकारी विभागों से अनुरोध किया है कि कार्यक्रम को सुचारू रूप से आयोजन के लिए हर साल की तरह ही व्यवस्था की जाए।
ये कार्यक्रम परिवार के मुखिया बाथिनी हरिनाथ गौड़ के निधन के बाद पहला आयोजन होगा। पिछले साल जून में लंबी बीमारी के बाद उनका 84 साल की उम्र में निधन हो गया था। वे देश भर से आए दमा के मरीजों को निःशुल्क जड़ी-बूटी वाली दवा बांटने वाले चौथी पीढ़ी के आखिरी गौड़ थे। हरिनाथ गौड़ अपने बड़े भाइयों के निधन के बाद पिछले तीन दशकों से इस कार्यक्रम को आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
178 सालों से बांट रहे निःशुल्क दवा
बाथिनी गौड़ परिवार का दावा है कि वे पिछले 178 सालों से निःशुल्क रूप से यह दवा बांट रहे हैं। जड़ी-बूटी वाली इस दवा का गुप्त नुस्खा उनके पूर्वज को 1845 में एक संत द्वारा दिया गया था, लेकिन इस शर्त पर कि ये दवा मुफ्त में दी जाएगी।
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शाकाहारियों के लिए भी दवा
बाथिनी गौड़ परिवार के सदस्य मृगशिरा कार्ती (जून के पहले हफ्ते में) के दौरान ये “अद्भुत दवा” देते हैं, जो मानसून की शुरुआत का संकेत देता है। परिवार द्वारा तैयार किया गया पीले रंग का एक जड़ी-बूटी वाला लेप एक जिंदा “मुर्रेल” मछली के बच्चे के मुंह में रखा जाता है, जिसे फिर मरीज के गले से नीचे उतार दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर ये दवा लगातार तीन साल तक ली जाए तो सांस लेने की तकलीफ से काफी राहत मिलती है। वहीं, शाकाहारियों के लिए परिवार गुड़ के साथ ये दवा देता है।
कुछ लोगों ने मछली वाली दवा को फर्जी बताया
देश के विभिन्न हिस्सों से दमा के मरीज इस इलाज के लिए हैदराबाद आते हैं। हालांकि, पिछले 15 सालों में जड़ी-बूटी के लेप की सामग्री को लेकर हुए विवादों के कारण इस दवा की लोकप्रियता कम हो गई। कुछ समूह, जो लोगों में वैज्ञानिक सोच पैदा करने का काम कर रहे हैं, उन्होंने इस मछली वाली दवा को फर्जी बताया है। उन्होंने अदालत का रुख भी किया और दावा किया कि चूंकि जड़ी-बूटी के लेप में भारी धातु होते हैं, इसलिए ये गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
हालांकि, गौड़ परिवार का दावा है कि अदालत के आदेशों के अनुसार प्रयोगशालाओं में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि जड़ी-बूटी का लेप सुरक्षित है। लोगों द्वारा चुनौती दिए जाने के बाद, परिवार ने इसे “मछली प्रसाद” कहना शुरू कर दिया। विवादों के बावजूद, लोग अपनी सांस संबंधी समस्याओं से राहत पाने की उम्मीद में हर साल कार्यक्रम स्थल पर आते रहते हैं। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में संख्या कम हो गई है।