उत्तराखंड के उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर चारधाम सड़क परियोजना के तहत बन रही निर्माणाधीन सुरंग में बीते 12 नवंबर को एक हादसा हुआ था, जिसमें 41 श्रमिक वहां फंस गए और 17 दिन बाद उनको बाहर निकाला जा सका है। सुरंग से बाहर निकालने के बाद श्रमिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके स्वास्थ्य की अच्छी तरह से देखरेख की जा रही है। उन्हें किसी तरह की शारीरिक चोट नहीं आई पर मनोचिकित्सकों का कहना है कि 17 दिनों तक इस तरह के भयावह अनुभव से गुजरने के बाद श्रमिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। जिसे मनोविज्ञान की भाषा में PTSD (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) कहा जाता है। इसलिए लंबे समय तक उनकी स्क्रीनिंग करना बेहद जरूरी है।
भारत सरकार द्वारा संचालित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज के डॉ. दिनाकरन डी के मुताबिक, “सुरंग में फंसे सभी श्रमिकों को स्ट्रेस होना, नींद न आना, बुरे सपने आना जैसे लक्षण लंबे समय तक दिखाई पड़ सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि सुरंग में फंसे सभी 41 लोगों को यह डिसऑर्डर न हों। बल्कि शायद कुछ लोग ही इससे पीड़ित हो सकते है लेकिन वे अगले 3 से 6 महीने तक इस डिसऑर्डर से पीड़ित रह सकते हैं।”
जानें क्या होता है PTSD?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, PTSD का मतलब पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर होता है, जिसमें कुछ लोगों को थोड़े-थोड़े समय बाद किसी चौंकाने वाली, हृदय विदारक, खतरनाक या डरावनी घटना का अनुभव होता रहता है। आमतौर पर किसी दर्दनाक स्थिति के दौरान हमें डर लगना या उसके कुछ दिनों बाद तक उसी घटना के बारे में सोचते रहना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अधिकतर लोग थोड़े समय बाद उस घटना से हुई क्षति से खुद को बाहर निकाल लेते हैं, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उस घटना से बाहर नहीं निकल पाते और उसके कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने लगता हैं और वे ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ से पीड़ित हो जाते हैं।
PTSD को आसान भाषा में समझाते हुए मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियर साइंस कंसल्टेंट डॉ. राजीव कुमार बताते हैं कि, PTSD एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जो व्यक्ति को किसी घटना के बाद होने वाले अत्यधिक तनाव, डर, या भीषण घटना के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। इसका कारण व्यक्ति के जीवन में हुई कोई ऐसी घटना होती है, जिससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पहुंचता है।
PTSD के लक्षण
डॉ. कुमार बताते हैं कि PTSD के लक्षण शारीरिक और भावनात्मक हो सकते हैं और व्यक्ति की दिनचर्या में बाधित कर सकते हैं। इसके साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, PTSD के लक्षण आमतौर पर घटना के 3 महीने के भीतर शुरू होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में वे इसके बाद में भी सामने आ सकते हैं।
- PTSD से पीड़ित व्यक्ति को उस भयावह मंज़र की तस्वीरें बुरी यादों के रूप में उसके दिमाग में घूमती रहती हैं। इसके साथ ही यह लक्षण व्यक्ति को अचानक और भीषण रूप से उन घटनाओं को फिर से महसूस करने का अहसास करा सकता है, जिनसे उसे यह समस्या हुई है।
- PTSD का एक लक्षण व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव भी होता है। पीड़ित व्यक्ति को बिना किसी कारण के गुस्सा आना, उत्तेजित होना, घबराहट या चुप एवं शांत रहना जैसे लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं।
- इस समस्या से व्यक्ति मानसिक रूप से भी काफी प्रभावित हो सकता है। ऐसे में व्यक्ति को चिंता, उदासी, और मानसिक दुख जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जो कि PTSD के तमाम लक्षणों में से एक लक्षण है।
- अक्सर व्यक्ति उस घटना से इतना पीड़ित हो गया होता है कि उसके ‘सबकॉन्शियस माइंड’ में वही बात घूमती रहती है और इसके कारण व्यक्ति जब रात में सोने जाता है तब व्यक्ति उसी घटना के भयानक सपनों का अनुभव कर सकता है।
PTSD से पीड़ित व्यक्ति का इलाज
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, PTSD से पीड़ित व्यक्ति के इलाज के लिए साइकोथेरेपी और कुछ तरह की एंटी-स्ट्रेस दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
- एक्सपोज़र थेरेपी : NIMH के अनुसार, एक्सपोज़र थेरेपी में पीड़ित व्यक्ति को उसी घटना के बारे में सोच कर उसके बारे में बात की जाती है या व्यक्ति को उस घटना के बारे में कई तरह की चीज़े लिखने के लिए दी जाती है। साथ ही इसमें व्यक्ति को घटनास्थल पर ले जाया जाता है, जिससे व्यक्ति को उस हादसे से उबरने में राहत मिलती है।
- साइकोथेरेपी : आमतौर पर ऐसी थेरेपी होती है, जिसे मनोचिकित्स्क व्यक्ति के विचार, उनकी यादें और उनका व्यवहार बदलने के लिए करते है। साइकोथेरेपी के दौरान 6 से 12 हफ्ते या उससे ज्यादा का भी समय लग सकता है। आमतौर पर साइकोथेरेपी को दो तरह से किया जाता है।
- कॉग्निटिव थेरेपी : इसमें व्यक्ति को उस घटना के बारे में दूसरे तरीके से सोचने पर मज़बूर किया जाता है। कई लोग ऐसे होते है, जो उस घटना में खुद को अपराधी मान लेते है, जिसके कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। ऐसे में यदि उसी घटना को दूसरी तरह से सोचा जाएं, तो उन्हें उस घटना से उबरने में आसानी होती है।