वायरल संक्रमण मम्प्स के मामले तेजी से बढ़ते हुए रिपोर्ट किए जा रहे हैं। अस्पतालों से प्राप्त हो रही जानकारियों के मुताबिक देश के अलग-अलग राज्यों में संक्रामक रोग के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। डॉक्टर्स ने बताया, बच्चे इसके सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। मम्प्स अति संक्रामक वायरल संक्रमण है, ऐसे में इसके प्रसार का खतरा काफी अधिक होता है।
इस वायरस का संक्रमण होने पर लोगों की पैरोटिक सैलिवरी ग्लैंड्स में सूजन आ जाती है और सिरदर्द, बुखार, शरीर में दर्द, पैंक्रियाज में सूजन और लड़कों के टेस्टिकल्स में सूजन जैसे लक्षण नजर आते हैं। कई लोगों को यह संक्रमण होने पर भूख नहीं लगती है। इस वायरस का खतरा बच्चों और कम इम्युनिटी वाले लोगों को ज्यादा होता है हालांकि यह किसी भी उम्र के लोगों को संक्रमित कर सकता है।
अगर किसी को गले के आसपास दर्द हो, कान के पास सूजन हो, शरीर दर्द हो या बुखार हो, तो लोगों को डॉक्टर से मिलकर जांच करानी चाहिए। आज इसी पर बात करते हैं और विशेषज्ञ से जानते हैं कि आखिर बच्चों में इस संक्रमण के क्या लक्षण होते हैं, क्यों बच्चों में संक्रमण तेज़ी से फैलता है, इसके आउटब्रेक होने की वजह क्या है और इससे बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है। इस संक्रमण के बारे में तमाम जानकारियां देने के लिए आरोग्य इंडिया से जुड़े हैं Pediatrician डॉ तरुण आनंद। आइये जानते हैं विस्तार से…
डा तरुण के मुताबिक, मम्प्स एक वायरल डिजीज है जो सलाइवा या ड्रॉपलेट इंफेक्शन के जरिये फैलती है। यह बीमारी सलाइवेरी ग्लैंड्स यानी थूक बनाने की ग्रंथियों को प्रभावित करती है जिसकी वजह से कान के आगे या कान के नीचे सूजन आना जो अमूमन सिम्पटम्स दिखाई देते हैं। इसकी वजह से दर्द, बुखार, बॉडी पेन जैसी परेशानियां होती हैं। ये लक्षण बच्चों में कॉमन होते हैं क्योंकि बच्चों की इम्यूनिटी कम होती है।
बच्चों में इस संक्रमण के फैलने की क्या वजह है?
जैसा कि हमने बताया कि मम्प्स वायरल डिजीज है और ये ड्रॉपलेट इंफेक्शन के जरिये फैलती है, मतलब यह बीमारी टच के जरिये, बात के जरिये, अगर किसी के संपर्क में आता है तो ओरल ड्रॉपलेट के जरिये फैलता है। सिंटोमेट्रिन होने पर कान के नीचे या आगे सूजन होती है जो बहुत पेनफुल होती है। साथ ही साथ 2 सप्ताह तक हाई ग्रेड फीवर और सूजन पर्सिस कर सकती है।
क्यों हो रहा इस संक्रमण का आउटब्रेक?
यह वायरस आमतौर पर हॉट और ह्यूमिक कंडीशन में ही बढ़ता है। इसके बढ़ने का दूसरा कारण यह भी है कि जो हमारी गवर्नमेंट वैक्सीनेशनल शिड्यूल है उसमें मम्प्स का टीका नहीं लगाया जाता है। हमारे यहां जो सरकारी टीके लगते हैं उसमें 9 महीने पर एमआर का टीका लगता है। जिसमें मीसल्स यानी खसरा और आर रूबेला लगता है उसमें एम एक और लगना चाहिए जो प्राइवेट वैक्सीनेशन में लगता है। गवर्नमेंट वैक्सीनेशनल शिड्यूल में मम्प्स मिसिंग होने के कारण इंडिया में इसके आउटब्रेक्स थोड़े से कॉमनली देखने को मिल रहे हैं।
इसके वैक्सीनेशन के बारे में भी जानना बहुत जरूरी
डॉक्टर तरुण बताते हैं कि इस बीमारी को वैक्सीनेशन के जरिये रोका जा सकता है। अगर आप प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं तो वहां 3 डोजेस में यह वैक्सीन लगती है, पहली 9 महीने में, दूसरी 15 महीने में और तीसरी डोज 5 साल में लगती है। यह वैक्सीन बहुत ही ज्यादा कॉस्ट अफोर्डेबल है। अगर आप अपने नियरेस्ट प्रैक्टिशनर के पास जायेंगे तो अराउंड 600 से 700 में ये वैक्सीन आसानी से अवेलेबल है और तीन बीमारियां एक साथ कवर कर लेती है यानी मीसल्स, मम्प्स और रूबेला।
बच्चों में इस संक्रमण से क्या डैमेज हो सकता है?
मम्प्स एक लांग डिजीज है जो पहले से चली आ रही है। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह एक ऐसी डिजीज है जो वैक्सीन से रोकी जा सकती है। अगर किसी चीज की वैक्सीन अवेलेबल है जो कॉस्ट अफोर्डेबल भी है तो पहली प्रिफरेंस हमेशा प्रिवेंशन की होना चाहिए। प्रिवेंशन इसी तरह हो सकता है एक तो प्रिवेंशन और दूसरा हाइजीन मेंटेन के जरिये।
इन बातों का भी रखें ध्यान
मम्प्स के लिए डॉक्टर कुछ दवाएं देते हैं। आमतौर पर कुछ हफ्तों के भीतर यह संक्रमण अपने आप ठीक हो जाता है। इस संक्रामक रोग की स्थिति में तरल पदार्थों के सेवन, गुनगुने नमक पानी से गरारे करने, अम्लीय खाद्य पदार्थों के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है। वायरल संक्रमण के खतरे से बचाव के लिए संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से बचें और अगर आप में लक्षण दिख रहे हैं तो समय रहते डॉक्टर से संपर्क करें।