भारत में आज भी अंगदान को लेकर लोगों में गलत धारणा है. इस कारण अंगदान करने वालों की संख्या भी काफी कम है. हर साल हजारों लोग ट्रांसप्लांट का इंतजार करते हैं, लेकिन डोनर के अभाव में ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता है.
जो कुछ लोग अंगदान करते भी है उनमें अधिकतर महिलाएं ही हैं. देश में 1995 से लेकर 2021 तक 36, 640 ट्रांसप्लांट हुए थे. इनमें अंग लेने वाले 29,000 पुरुष थे, जबकि केवल 6,945 महिलाओं ने ही ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराया था. अंगदान करने वाले हर पांच व्यक्ति में से चार महिलाएं हैं. जबकि अंग लेने वालों में हर पांच में से चार पुरुष हैं. इस आंकड़े से पता चलता है कि अंगदान करने के मामले में महिलाएं पुरुषों से काफी आगे हैं.
लिविंग ऑर्गन डोनेशन के मामले में भी महिलाएं आगे हैं. एक्सपेरिमेंटल एंड क्लीनिकल जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, 2019 में हुए ऑर्गन ट्रांसप्लांट में 80 फीसदी लिविंग डोनर महिलाएं ही थी. इनसे अंग प्राप्त करने वाले 80 फीसदी पुरुष थे. यानी पुरुष अंगदान करने के मामले में महिलाओं के आसपास भी नहीं हैं।
महिलाएं लिविर डोनर भी हैं. यानी जिंदा रहते हुए अंगदान करने के मामले में पुरुषों से काफी आगे हैं. लीविंग डोनर अपनी किडनी और लिवर को दान कर सकता है. अधिकतर मामलों में पुरुषों को किडनी महिला ही डोनेट करती हैं.
क्या है अंगदान की वजह
एक्सपर्ट्स कहते हैं किमहिलाएं सिर्फ अपने पति ही नहीं बल्कि बच्चे और भाई बहनों को भी अंगदान करती है. महिलाओं के अंगदान करने की वजह आर्थिक नुकसान से बचना होता है।
महिलाओं को लगता है कि अगर अंगदान करेंगे तो पुरुषों को घर पर बैठना पड़ सकता है. ऐसे में आर्थिक नुकसान होने का रिस्क रहता है. इसलिए महिलाएं अंगदान करती हैं. अगर परिवार में किसी बच्चे को अंगदान करना है तो उसमें भी महिलाएं ही आगे आती हैं.
पुणे के डी वाई मेडिकल कॉलेज में ट्रांसप्लांट कॉर्डिनेटर मयूरी कहती है कि पिछले 15 साल से इस फील्ड में काम कर रही है, लेकिन आजतक केवल उन्होने एक ही ऐसा केस देखा है जिसमें पुरुषों ने महिला को अंगदान किया है. बाकी सभी मामलों में अंगदान करने वाली महिलाएं ही ही है. महिलाओं घर की जिम्मेदारी और आर्थिक नुकसान से परिवार को बचाने के लिए ऐसा करती हैं।