चश्मा हटाने के लिए आजकल कई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें से लेसिक (LASIK) सबसे कॉमन सर्जरी है. कई सालों से लेसिक सर्जरी के जरिए लाखों की तादाद में लोग चश्मे से छुटकारा भी पा चुके हैं. डॉक्टर्स की मानें तो आंखों से चश्मा उतारने की यह तकनीक बेहद असरदार और सुरक्षित होती है. हालांकि लेसिक सर्जरी के बाद कई लोगों को ड्राईनेस की समस्या का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुछ समय बाद ड्रॉप्स का इस्तेमाल करने से आंखें नॉर्मल हो जाती हैं. इस सर्जरी का सक्सेस रेट शत-प्रतिशत माना जा सकता है, क्योंकि सर्जरी केवल उन्हीं लोगों की होती है, जो इसके लिए एलिजिबल होते हैं. कई लोगों की कॉर्निया पतली और कमजोर होती हैं, ऐसे मामलों में स्क्रीनिंग करने के बाद लेसिक कराने की सलाह नहीं दी जाती है.
नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. तुषार ग्रोवर के अनुसार लेसिक एक सर्जिकल प्रोसेस होती हैं. इसमें एडवांस मशीनों की मदद से आंखों का नंबर हटाया जाता है और विजन को करेक्ट किया जाता है. लेसिक में लेजर सर्जरी के द्वारा कॉर्निया को पतला कर रीशेप किया जाता है. इससे आंख की इमेज सही जगह पर बनने लगती है और विजन ठीक हो जाता है. लेसिक सबसे कॉमन सर्जरी है और कॉर्निया की थिकनेस अच्छी होने पर इससे बेस्ट रिजल्ट मिलता है. हालांकि जिन लोगों के कॉर्नियी की थिकनेस कम होती है या जिनकी कॉर्निया कमजोर होती है, उन्हें लेसिक कराने की सलाह नहीं दी जाती है. ऐसी कंडीशन में अन्य तकनीकों का इस्तेमाल कर चश्मा उतारा जाता है.
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अब सवाल है कि क्या लेसिक करने से आंखों की रोशनी जा सकती है? क्या यह सर्जिकल प्रोसेस खतरनाक भी हो सकती है? इस पर डॉ. तुषार ग्रोवर कहते हैं कि लेसिक सर्जरी काफी सुरक्षित होती है. यह सर्जरी करने से पहले व्यक्ति की आंखों की पूरी स्क्रीनिंग की जाती हैं. इसमें कॉर्निया की थिकनेस, कॉर्निया की शेप, कॉर्निया की मजबूती, आंखों की ड्राईनेस और रेटिना का टेस्ट होता है. इसके आधार पर ही लेसिक करने का फैसला लिया जाता है. अगर स्क्रीनिंग में सभी चीजें नॉर्मल नहीं होती हैं, तो लेसिक कराने की सलाह नहीं दी जाती है. ऐसी कंडीशन में चश्मा हटाने के लिए अन्य तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. लेसिक में स्क्रीनिंग के बाद लोगों की कंडीशन के अनुसार सर्जरी की जाती है, जिसकी वजह से यह बेहद सुरक्षित होती है. लेसिक में सिर्फ 10 से 20 मिनट का समय लगता है. चश्मा हटाने के बाद साइड इफेक्ट रेयर होते हैं.
डॉक्टर की मानें तो लेसिक का सक्सेस रेट शत प्रतिशत माना जाता है, क्योंकि इसके असफल होने की संभावना न के बराबर होती है और पूरी स्क्रीनिंग व कैलकुलेशन के बाद ही लेसिक सर्जरी की जाती है. इसमें किसी भी तरह का जोखिम नहीं लिया जाता है. उम्र की बात की जाए, तो लेसिक सर्जरी करने के लिए लोगों की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए. इससे कम उम्र में चश्मे का नंबर बदलता रहता है और लेसिक नंबर स्टेबल करने के बाद ही की जाती है. अधिकतम उम्र की बात की जाए, तो 45 साल तक के लोग लेजर आई सर्जरी करवा सकते हैं. इससे ज्यादा उम्र में आमतौर पर यह सर्जरी नहीं की जाती है.