आलू हर किसी के घर में मौजूद होता है. इसकी सब्जी बनती है, चिप्स और तमाम तरह के व्यंजन भी. आमतौर पर आलू के अंदर का हिस्सा सफेद होता है. लेकिन कुछ आलू हरे भी होते हैं. जैसे ही आप छिलका निकालते हैं, उसका हरापन हमें नजर आने लगता है. लोग इसे भी खा जाते हैं और आमतौर पर कोई तकलीफ नहीं होती. गांवों में रहने वाले लोग जानते हैं कि आलू उगाते समय जो हिस्सा मिट्टी के बाहर रह जाता है, वही हरा रह जाता है. लेकिन क्या यह सेहत के लिए खतरनाक है? इसकी जानकारी हर किसी को होनी चाहिए ताकि कोई भ्रम न रहे.
हरी आलू नहीं है जानलेवा
अमेरिका के साइंटिस्ट मैरी मैकमिलन और जेसी थॉम्पसन ने इस पर एक रिसर्च किया, जो र्क्वाटली जनरल मेडिसिन में पब्लिश हुआ है. इनके मुताबिक, आलू का हरा होना, उसके जानलेवा होने का स्पष्ट संकेत नहीं है. लेकिन इसके कई दुष्प्रभाव हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 में दक्षिण लंदन के एक स्कूल में 78 छात्र अचानक बीमार हो गए. उन्हें उल्टी दस्त, पेट दर्द, पेट में मरोड़ जैसी दिक्कत होने लगी. कई तो तेज बुखार की वजह से अचेत हो गए. हालांकि, 5 दिनों में सभी पूरी तरह ठीक हो गए, लेकिन कई स्टूडेंट हफ्तों तक मतिभ्रम का शिकार रहे. जब जांच की गई तो पता चला कि छात्रों को पिछली गर्मियों में रखा आलू बनाकर खिलाया गया था, जिसमें कोपलें फूट गई थीं. एक्सपर्ट ने कहा, इसी वजह से फूड प्वाइजनिंंग हुई. लगभग सभी वनस्पतियों में जब अंकुर आते हैं तो वे एक विषाक्त पदार्थ छोड़ते हैं. यह उनकी आत्मरक्षा प्रणाली का हिस्सा है, लेकिन इंसानों के लिए यह खतरनाक हो सकता है.
हरा रंग सोलानाइन नामक जहरीले पदार्थ
रिपोर्ट के मुताबिक प्रकाश में रखे आलू क्लोरोफिल बनाते हैं. यही पदार्थ पौधों और शैवाल को हरा रंग देता है. इसी वजह से आलू भी पीले, हल्के भूरे से हरे रंग के हो जाते हैं. वैसे तो तो आलू को हरा रंग देने वाला यह क्लोरोफिल हानिरहित है. इसीलिए इसके खाने से दिक्कत नहीं होती. लेकिन हरा रंग सोलानाइन नामक जहरीले पदार्थ की उपस्थिति का भी संकेत देता है.
क्या है सोलानाइन
सोलानाइन जहरीला पदार्थ ग्लाइकोअल्कलॉइड्स है. पहली बार 1820 में इसे नाइटशेड प्रजाति के फलों में में पाया गया था. बैंगन, टमाटर और कुछ बेरियां नाइटशेड परिवार के सदस्य हैं. इसीलिए इनमें से कई में अत्यधिक विषाक्त एल्कलॉइड होते हैं. जब आलू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं अथवा सूरज की रोशनी में रहते हैं, तो वे अधिक सोलानाइन बनाते हैं.
Also Read – ज्यादा नमक सेहत के लिए कितना खतरनाक? नए साल से शुरू कर दें कम खाना
अमेरिका-यूरोप में किस तरह की पाबंदी
आलू में अंकुरण होने का मतलब यह नहीं है कि वो जहरीला होगा. यदि आलू का छिलका चिकना और आलू सख्त है तो यह नुकसान नहीं करेगा. लेकिन अंकुरण के साथ ही यदि आलू सिकुड़ गया, इसका छिलका मुरझा चुका है, या फिर ज्यादा अंकुरित हो गया तो न खाएं. यह फूड प्वाइजनिंंग का कारण बन सकता है. आलू जितना ज्यादा हरा होगा, उसमें सोलानाइन की मात्रा उतनी ही अधिक होगी. इसीलिए आलू को काटकर खुले प्रकाश में रखने की सलाह नहीं दी जाती. सोलानाइन की मौजूदगी की वजह से आलू कड़वे स्वाद का हो जाता है. इससे मुंह या गले में जलन हो सकती है.
यही वजह है कि यूरोपीय देशों में प्रति किलोग्राम आलू के लिए 100 मिलीग्राम ग्लाइकोअल्कलॉइड्स की सीमा निर्धारित की गई है. संयुक्त राज्य अमेरिका में 200-250 मिलीग्राम. यदि आलू में सोलानाइन का स्तर बहुत अधिक हो गया, तो यह आपको बीमार कर सकता है. कुछ दुर्लभ मामलों में इससे मौत तक हो सकती है.
Also Read – बैक्टीरिया के पास दिमाग नहीं होता फिर भी जानते हैं इंसान को कैसे परेशान किया जाए
आलू का इस्तेमाल कैसे करें
एक्सपर्ट के मुताबिक, आलू के हरे भागों तथा कड़वे स्वाद वाले आलू का सेवन न करें. सोलानाइन की अधिकतम मात्रा आलू के छिलके में होती है. आलू को छीलने से, उसका अंकुरित भाग काटकर हटा देने से दिक्कत नहीं होती. आलू को उबालने, माइक्रोवेव करने, तलने, अथवा भूनने से सोलानाइन के स्तर में कमी आती है. सबसे जरूरी बात इसके संग्रह करने का तरीका. आलू को कभी भी प्रकाश की रोशनी में न रखें. इसे ठंडी जगह पर रखें, जहां प्रकाश काफी कम हो या न के बराबर हो. हालांकि, इसका मतलब ये नहीं कि फ्रिज में रख दिया जाए. फ्रिज में रखने से आलू में सोलानाइन की मात्रा में वृद्धि देखी गई है. यह खतरनाक हो सकता है.