मातृ दिवस के मौके पर डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि हर 5 में से 1 नई मां को प्रसवोत्तर अवसाद का सामना करना पड़ सकता है। मां बनना खुशी की बात जरूर है, लेकिन 20% से ज्यादा महिलाओं के लिए यह नया जीवन तनाव, चिंता और अवसाद लेकर आता है। अगर उन्हें सही मदद न मिले तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। हर साल मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है।
प्रसवोत्तर अवसाद एक आम परेशानी है, लेकिन इसका इलाज किया जा सकता है। कई महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद यह परेशानी होती है। इसके सही कारण का पता लगाना मुश्किल होता है, लेकिन उदासी, चिंता और थकान जैसे भाव कई वजहों से हो सकते हैं। इन वजहों में माँ का जीन या शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, नींद की कमी, थकान या माँ बनने का दबाव शामिल हो सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रसव के दो हफ्ते के अंदर 22% महिलाओं में प्रसवोत्तर अवसाद पाया गया है।
मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ मेहरोत्रा ने बताया, “माता-पिता बनने का सफर कई चुनौतियों को लेकर आता है, जिससे उनके भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। देर से गर्भधारण, आईवीएफ जैसी प्रजनन तकनीक और प्रीमैच्योर (समय से पहले) जन्म का बोझ माँ के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।”
अध्ययनों से पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान माँ की मानसिक बीमारी का असर माँ और बच्चे दोनों पर पड़ता है, जिसमें समय से पहले जन्म और बच्चे के दिमाग के विकास में परेशानी शामिल है।
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डॉ. सौरभ ने बताया, “मेदांता में हम देखते हैं कि लगभग 70-80 प्रतिशत माताओं को प्रसव के बाद उदासी का अनुभव होता है, जिनमें से 20 प्रतिशत माँ प्रसवोत्तर अवसाद से जूझती हैं। इससे गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म के बाद तक माँ को हर तरह का भावनात्मक समर्थन देने की ज़रूरत रेखांकित होती है।”
प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षणों में नींद न आना, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन और यहां तक कि बच्चे से जुड़ाव बनाने में परेशानी भी शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर माँ को हल्का अवसाद है, तो मदद मांगना सबसे जरूरी कदम हो सकता है। इससे उन्हें बच्चे के साथ आसानी से जुड़ाव बनाने में मदद मिलेगी।
Doctor ने दी ये सलाह
डॉ. तेजी का कहना है कि “प्रसवोत्तर अवसाद को कम करने के लिए गर्भावस्था और जन्म के बाद की जांच के दौरान इसका जल्दी पता लगाना और भावनात्मक स्वास्थ्य को अहमियत देना पहला कदम है। साथ ही काउंसलिंग और थेरेपी जैसी पेशेवर मदद लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है।”
बेंगलुरु के मदरहुड हॉस्पिटल्स की वरिष्ठ सलाहकार, प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. तेजी दवाने ने बताया, “अगर इलाज न कराया जाए तो यह परेशानी कई महीनों या उससे भी ज्यादा समय तक रह सकती है। कभी-कभी, लक्षणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए उपचार विकल्पों में एंटीडिप्रेसेंट जैसी दवाएं भी शामिल होती हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि एक सहायक पारिवारिक माहौल बनाना और नए माता-पिता के लिए स्व-देखभाल प्रथाओं को विकसित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।