दिनभर के चिड़चिड़ेपन और तनाव के कारण अक्सर पेरेंटस बच्चों के साथ समय बिताना भूल जाते हैं। आधुनिक जीवनशैली के चलते वे बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते। इसका असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर दिखने लगता है। इसके बावजूद वे बच्चों से हर पायदान पर सफल होने की उम्मीद भी रखते हैं। इसके चलते बच्चे प्रेशर का शिकार हो जाते हैं और माता पिता से दूर होने लगते है। बच्चों की ग्रोथ और उनकी सफलता के लिए उन्हें माता पिता का समय और मोरल सपोर्ट दोनों की ही जरूरत होती है। बच्चों की सफलता के लिए पॉजिटिव पेरेंटिंग बेहद ज़रूरी है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर पॉजिटिव पेरेंटिंग क्या है और इसके लिए किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है।
सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को समझकर उनके मन में उठने वाले नकारात्मक विचारों का मूल्यांकन कर उसे सही दिशा प्रदान करना पॉजिटिव पेरेंटिंग कहलाता है। बच्चों के प्रति उदारता और सहनशीलता दिखाकर उन्हें आगे बढ़ने में मदद करना पॉजिटिव पेरेंटिंग का संकेत होता है। इससे बच्चे न केवल पेरेंटस के नज़दीक आने लगते हैं बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी मज़बूत बनाते हैं।
इस बारे में डॉ आरती आनंद बताती हैं कि बच्चे के स्वभाव में दिनों दिन बढ़ रही कटुता के बावजूद बच्चों के प्रति प्रेम दर्शा कर उन्हें नैतिक मूल्यों की जानकारी देना पॉजिटिव पेरेंटिंग कहलाता है। ऐसे माता पिता बच्चों की कमियां निकालने की जगह उनको हर कार्य के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं। हेल्दी एनवायरमेंट मिलने से बच्चा पेरेंटस के करीब आने लगता है और उसमें कॉन्फिडेंस बनने लग जाता है।
पॉजिटिव पेरेंटिंग के लिए क्या करें
वास्तविक एक्सपेक्टेंशन
बच्चों के साथ समय बिताएं और उनसे वास्तविक एक्सपेक्टेंशन रखें, जिन्हें वो पूरा कर पाएं। बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीदें न लगाएं। उन्हें अपना व्यक्तित्व खुद बनाने दें और उनके मन की बात को जानना भी बेहद ज़रूरी है। इससे बच्चे पूरी मेहनत और लगन से आगे बढ़ने में सफल होते हैं। साथ ही दूसरे बच्चों से उनकी तुलना करना छोड़ दें।
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एप्रीशिएट करें
अगर आप बच्चों की छोटी-छोटी गलतियां नोटिस करते हैं तो उनके प्रयासों की सराहना भी अवश्य करें। इससे मनोबल बढ़ने लगता है और वो बढ़चढ़कर हर गतिविधि में हिस्सा लेने लगते हैं। उन्हें मोटिवेट करें जिससे वे किसी भी काम को करने से कतराएं नहीं। इससे बच्चे में आत्मविश्वास की भावना बढ़ने लगती है।
बच्चों की राय शामिल करें
छोटा समझकर बच्चों को साइन लाइन कर देने से उनमें आत्मविश्वास की कमी रह जाती है और वे हर समय पीछे ही रहते हैं। उन्हें आगे लेकर आने के लिए हर चीज़ में उनकी मर्जी को शामिल करें और उन्हें परिवार का ज़रूरी हिस्सा होने का भी एहसास दिलाएं। इससे बच्चा हर क्षेत्र में सफल साबित होता है।
अपनी बात इस तरह समझाएं
रोजमर्रा के जीवन में होने वाली छोटी-छोटी गतिविधियां बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इससे बच्चों में नाराजगी और चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है। ऐसे में बच्चों को किसी भी बात को मानने के लिए बाध्य करने से पहले उदाहरण देकर उस समस्या से बच्चों को सचेत करें, जिससे वे उस बात को समझकर जीवन में उसे अपनाएं।
इंडिपेंडेट बनाएं
बच्चों कों उनके काम को करने में हर बार मदद न करें। उन्हें अपने अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों की भी जानकारी दें, ताकि वे आत्मनिर्भर बन पाएं। उन्हें उनके हर सामान की जानकारी दें। इससे वे अपनी चीजों की हिफाज़त ठीक तरह से कर पाएंगे और उसे आवश्यकतानुसार इस्तेमाल करेंगे। इससे बच्चों का स्वभाव मददगार बनने लगता है।