अस्थमा, सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। अस्थमा की स्थिति में वायुमार्ग संकीर्ण और सूज जाते हैं, इसके अलावा अतिरिक्त बलगम बनने लगता है, जिससे सांस लेने में समस्या होने लगती है। धूल, धुआं, हवा में मौजूद प्रदूषण और कई कारणों से अस्थमा के मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। खास बात यह है कि अस्थमा रोग अब केवल बुजुर्गों को ही नहीं, बल्कि बच्चों में भी होने लगा है और यह समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। बच्चों के लिए एक गंभीर बीमारी बनती जा रही है।
शिशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार, 12-13 साल की उम्र में ठीक हो जाए तो ठीक, वरना यह उम्र भर के लिए भी रह सकती है। इस बार ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) ने विश्व अस्थमा दिवस-2024 की थीम ‘अस्थमा शिक्षा सशक्तीकरण’ रखा है। चिकित्सकों का कहना है कि अस्थमा ऐसी बीमारी है, जिससे बचाव के साथ-साथ यदि जांच और इलाज को लेकर सतर्क रहा जाए, तो यह बीमारी नियंत्रण में रहती है। ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट-2024 के मुताबिक, भारत में तीन करोड़ पचास लाख लोग अस्थमा से पीडि़त हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में अस्थमा के 10 फीसदी मामले भारत में ही हैं, इनमें से 15 फीसदी मामले बच्चों में ही हैं। अस्थमा जैसी बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता लाने एवं विश्व स्तर पर अस्थमा से बचाव और रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष मई महीने के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 7 मई 2024 को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जा रहा है।
विश्व अस्थमा दिवस का इतिहास
अस्थमा दिवस मनाने की शुरुआत 1993 में हुई थी, जब पहली बार ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से इस दिन को मनाया। 1998 में 35 से अधिक देशों ने विश्व अस्थमा दिवस मनाया, जो बार्सिलोना, स्पेन में पहली विश्व अस्थमा बैठक से जुड़ा था। इस कार्यक्रम के बाद दुनियाभर के देशों में मई महीने के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन अस्थमा के प्रति लोगों में जागरुकता लाने का प्रयास किया जाता है।
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अस्थमा को हल्के में लेना ठीक नहीं
पिछले कुछ समय में प्रदूषण और लाइफ स्टाइल में बदलावों की वजह से अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आमतौर पर अस्थमा जैसी सांस से जुड़ी बीमारी को नजरअंदाज कर दिया जाता है और इसका सही तरीके से इलाज भी नहीं किया जाता। खासतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अस्थमा के मरीजों से कहा जाता है कि यह कोई बीमारी नहीं है, जिसे ठीक करने के लिए इलाज और दवाओं का सहारा लिया जाए। ऐसे में इस दिन को मनाने का उद्देश्य विश्व स्तर पर अस्थमा के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। साथ ही, दुनियाभर में अस्थमा से पीडि़त लोगों को सही इलाज मिल सके, इसके प्रति जागरूकता लाना है।
– डॉ बीआर जांगीड़, वरिष्ठ विशेषज्ञ (श्वास रोग), राजकीय उप ज़िला चिकित्सालय, परबतसर
बच्चों में बढ़ रही है अस्थमा की समस्या
बच्चों में अस्थमा की बीमारी दिनों-दिन बढ़ रही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे एलर्जी, बच्चों का एक्सपोजर नहीं होना, अभिभावकों में अस्थमा होना आदि। बच्चों में अस्थमा के लक्षण भी बड़ों से अलग होते हैं। अस्थमा के बचाव के लिए ट्रिगरिंग फैक्टर से बचाव करना होता है। बच्चों में अस्थमा की शिकायत होने पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए, ताकि समय रहते उपचार हो सके। अन्यथा यदि 12-13 साल की उम्र में अस्थमा ठीक नहीं होता है तो उम्र भर के लिए बीमारी बन सकता है।
– डॉ. विकास चौधरी, शिशु रोग विशेषज्ञ, जेएलएन राजकीय अस्पताल, नागौर