एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण होने वाली मौतों के मामले में भारत सबसे ऊपर है। एक नये सर्वे में यह कहा गया है कि, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की वजह से सबसे अधिक मृत्यु दर वाले देशों में भारत का नाम शामिल है। इस सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि, एंटीबायोटिक दवाओं के कार हर 9 मिनट में एक बच्चे की मृत्यु होती है। ये हैरान करने वाले खुलासे किए गए ग्लोबल आयुर्वेद फेस्टिवल (जीएएफ) के एक सेशन में जहां एक्सपर्ट ने एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के खतरे और इसमें पारंपरिक दवाओं की भूमिका पर चर्चा की।
बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ रहा है और यह दुनियाभर में एक बड़े हेल्थ क्राइसिस के तौर पर देखा जा रहा है।
एशियाई और लैटिन अमेरिका में लगातार बढ़ रहा यह खतरा
इस विषय पर बोलते हुए थॉमस रैम्प (जर्मनी में डुइसबर्ग-एसेन विश्वविद्यालय से प्रोफेसर, चिकित्सा विशेषज्ञ) ने कहा कि, ”अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी एंटीबायोटिक दवाओं के नुकसान का खतरा बहुत अधिक है लेकिन एशियाई और लैटिन अमेरिका के देशों में यह खतरा लगातार बढ़ रहा है।
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एक्सपर्ट्स के अनुसार, एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन के बाद होन वाले प्रतिरोध एक “नई घटना” की तरह हैं जो 1940 में रिपोर्ट किए गए पेनिसिलिन रेजिस्टेंस की तरह हैं। थॉमस रैम्प ने कहा कि पेनिसिलिन रेजिस्टेस को काबू करने के लिए नए एंटीबायोटिक्स का निर्माण किया गया था लेकिन, अब इससे जुड़ी समस्याएं भी बढ़ रही है।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस बढ़ने का कारण
प्रोफेसर रैम्प का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोधी रिएक्शन्स बढ़ने की वजह इन दवाओं का बहुत अधिक सेवन करना सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि अब एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल केवल मेडिकल फील्ड तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया में बनायी जाने वाली 80 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल खेतों और मछली पालन जैसे कामों में भी होता है। ये चीजें लोगों के रोजमर्रा के खानपान में शामिल होती हैं और इसी वजह से लोग अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक्स का सेवन भी कर रहे हैं।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस हानिकारक होता है क्योंकि, इसकी वजह से बीमार लोगों के इलाज में दिक्कतें आ सकती हैं। इससे अन्य ट्रीटमेंट्स का प्रभाव भी कम हो सकता है या उनमें अधिक समय लग सकता है।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से होने वाली समस्याएं
- क्रोनिक बीमारियों के कारण मृत्यु का रिस्क बढ़ सकताहै।
- दवा खाने से बहुत अधिक नुकसान हो सकता है।
- अस्पताल में भर्ती होने का रिस्क बढ़ जाता है।
- इलाज फेल होने या इलाज में अधिक समय लगता है।
- इलाज का खर्च बढ़ जाता है।
बचाव के लिए अपनाए ये तरीके
सही निदान
चिकित्सकों को एंटीबायोटिक नुस्खे पर विचार करने से पहले जीवाणु संक्रमण के सटीक निदान का प्रयास करना चाहिए। इसमें व्यापक नैदानिक मूल्यांकन, प्रयोगशाला परीक्षणों का विवेकपूर्ण अनुप्रयोग और नुस्खे पर अच्छी तरह से सूचित सहमति स्थापित करने के लिए रोगी के चिकित्सा इतिहास की सावधानीपूर्वक समीक्षा शामिल है।
सही प्रिस्क्रिप्शन
दवाओं को विवेकपूर्ण ढंग से निर्देशित और अत्यंत अनिवार्य स्थितियों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। चिकित्सक वायरल संक्रमण के खिलाफ मरीजों को जागरूक करने की जिम्मेदारी निभाते हैं। ताकि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वाभाविक रूप से इन बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाने के महत्व पर जोर दिया जा सके।
सही खुराक और सही समय
यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि एंटीबायोटिक्स की सही खुराक उचित अवधि के लिए निर्धारित की जाए। अधूरा उपचार प्रतिरोध पैदा करता है, जिससे जीवित बैक्टीरिया अपना लचीलापन मजबूत करने का अवसर मिलता है। इससे रोगी की सुधार प्रगति बाधक होती है।
रोगी के बारे में सही जानकारी
खतरों को समझने और निर्धारित नियमों का पालन करने के महत्व के बारे में रोगियों को शिक्षित करने का दायित्व चिकित्सकों पर है। एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रमों की सफलता रोगी जागरूकता और सहयोग पर निर्भर करती है।
विकल्पों की तलाश
स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को उपयुक्त हो तो सक्रिय रूप से गैर-एंटीबायोटिक विकल्पों पर विचार करना चाहिए। कई बार देखा गया है कि सहायक देखभाल अधिक विवेकपूर्ण सिद्ध हो सकती है। जिससे अनावश्यक एंटीबायोटिक जोखिम को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है।
इस तरह करें रोगी की देखभाल
एंटीबायोटिक्स अब आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के बुनियादी ढांचे का अभिन्न अंग बन गए हैं। जब उचित रूप से निर्देशित किया जाता है तो वे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए आवश्यक उपकरण के रूप में कार्य करते हैं और रोगियों के लिए जीवन रेखा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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इसकी पहुंच सीमित करने से रोगी की देखभाल में बाधा आ सकती है, जबकि प्रयोग की अति से प्रतिरोध का विकास हो सकता है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध की बढ़ती वैश्विक चुनौती वास्तविक और जटिल खतरा बन गई है। लंबी अवधि में वार्षिक मृत्यु दर में संभावित वृद्धि को रोकने के लिए तत्काल, स्थायी कार्रवाई अनिवार्य है।