Mental Health Awareness Month के अंतर्गत आज बात करेंगे अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर यानी ADHD की। अगर कोई बच्चा जल्दी किसी से बात नहीं कर पा रहा है, किसी भी चीज़ें पढ़ाई या खेल में एकाग्र नहीं हो पा रहा है और अपनी ही बातों को लेकर कंफ्यूज रहता है तो उसे कम दिमाग वाला या मंदबुद्धि समझने की गलती न करें। दरअसल, यह एक गंभीर बीमारी का लक्षण है। इस बीमारी को अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी (ADHD) कहते हैं। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ADHD कितनी गंभीर हो सकती है और इसे कैसे ठीक किया जाए।
अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर यानी ADHD एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है। जो बच्चों के दिमाग और नर्वस सिस्टम के डेवलपमेंट को बुरी तरह से प्रभावित करता है जिसकी वजह से दिमाग स्लो काम करता है। इसकी चपेट में आने पर कई समस्याएं लगातार देखने को मिलती हैं। इस डिसऑर्डर से ज्यादातर बच्चे ग्रसित होते हैं हालांकि, कभी-कभी एडल्ट लोगों में भी यह समस्या देखी जाती है, जिसे एडल्ट एडीएचडी कहा जाता है। अब इस डिसऑर्डर को एक्सपर्ट से समझते हैं कि इसके लक्षण क्या हैं, इसकी वजह क्या है, इसका इलाज कैसे होता है और इस डिसऑर्डर के बारे में समाज में कितनी जागरूकता है। ये बताने के लिए आरोग्य इंडिया एक्सपर्ट के तौर पर जुड़े हैं डॉ अनुराग अग्रवाल।
डॉ अनुराग अग्रवाल के मुताबिक, यह बीमारी बच्चों में ज्यादा पाई जाती है। इस बीमारी के होने पर बच्चों में चंचलता, बहुत ज्यादा दौड़भाग होना जैसी चीजें नजर आती हैं। यह एक कॉमन मेंटल बीमारी है। ऐसे बच्चे बचपन से ही बहुत ओवर एक्टिव होते हैं। ये लक्षण शुरूआत से ही दिखने लगते हैं लेकिन अगर छह साल की उम्र तक ये लक्षण बने रहते हैं तो हम इनकी डाग्नोसिस बनाते हैं। डाग्नोसिस के लिए कुछ स्पेसिफिक सिम्टम्स और क्राइटेरिया होते हैं।
इस डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट कैसे होता है?
इसका ट्रीटमेंट मल्टीपल फैक्टर्स होता है, कुछ दवाइयों का काम होता है जो कंसर्टेशन पावर को बढ़ाती है, अपने टास्क पर फोकस करने की क्षमता को बढ़ाती है। साथ ही बिहेविरल मॉडिफिकेशन भी करना पड़ता है। इसमें पैरेंट्स को भी बच्चों को काऊंसिल करना पड़ता है, कि कैसे बच्चों को डील करना है, बच्चों से कैसे काम करवाना है।
क्या इसका मुख्य लक्षण चंचलता है, चंचलता को डिसऑर्डर की श्रेणी में पहचाना कैसे जाए?
चंचलता यानी हाइपर एक्टिव बिहेवियर एक महत्वपूर्ण लक्षण होता है लेकिन इन अटेंशन भी एक बहुत कॉमन लक्षण है। इसमें बच्चे अक्सर अपनी चीजें खो दिया करते हैं।
क्या बचपन से ही बच्चे इस डिसऑर्डर के शिकार हो सकते हैं, इलाज में लापरवाही बरतने के क्या नुकसान हो सकते हैं?
यह बीमारी छोटे बच्चों में मुख्यता होती ही है। इसके सिम्टम्स तीन से पांच साल तक की एज में शुरू होते हैं। ऐसा माना जाता है कि विद एज जब एडोलेसेंट एज 14-15 साल में यह बीमारी अपने आप धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसके लक्षण अपने आप कम होने लगते हैं। अगर 4-5 साल की एज में इसके ट्रीटमेंट को इग्नोर किया जाये तो 15 साल की उम्र आते-आते बच्चा उतना अच्छे तरीके से परफॉर्मेंस नहीं कर पाता है।
मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के उपलक्ष्य में डॉ अनुराग ने दर्शकों से अपील भी की है?
इस समय मानसिक अवेयरनेस का महीना चल रहा है। इसमें केवल ADHD ही नहीं, हमको यह समझने की जरूरत है कि जो भी मानसिक बीमारियां हैं उनको अगर समय रहते जल्दी ही पकड़ा जा सके और उसके विशेषज्ञ से इलाज लिया जाये। ऐसे मरीजों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाये।