पानी से लेकर खाने तक, हर जगह अब छोटे-छोटे प्लास्टिक के टुकड़े मिल रहे हैं जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है. अब न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका इस्तेमाल कर देखा कि इन माइक्रोप्लास्टिक का स्तर मानव के गर्भपटल (प्लेसेंटा) में कितना है. उन्होंने अपने शोध में पाया कि सभी 62 गर्भपटल के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद था. इसकी मात्रा 6.5 से 790 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम ऊतक के बीच थी.
पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है. भले ही ये संख्याएं छोटी लगें (एक माइक्रोग्राम बहुत छोटा होता है), लेकिन चिंता इस बात की है कि पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है और इसका स्वास्थ्य पर असर हो सकता है. मुख्य शोधकर्ता मैथ्यू कैम्पेन माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मात्रा को लेकर चिंतित हैं. उनका कहना है कि अगर ये छोटे प्लास्टिक कण गर्भपटल को प्रभावित कर सकते हैं, तो ये पृथ्वी पर सभी स्तनधारी जीवन को प्रभावित कर सकते हैं.
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वैज्ञानिकों ने कैसे खोजा?
कैम्पेन और उनकी टीम ने नमूनों का विश्लेषण करने के लिए एक विशेष विधि का इस्तेमाल किया. सैपोनिफिकेशन नामक प्रक्रिया में, उन्होंने नमूनों का रासायनिक उपचार करके वसा और प्रोटीन को एक तरह के साबुन में “पचा” दिया. फिर उन्होंने प्रत्येक नमूने को एक अल्ट्रासेन्ट्रीफ्यूज में घुमाया, जिससे ट्यूब के तल पर प्लास्टिक की एक छोटी सी गांठ रह गई. अगले पायरोलिसिस नामक तकनीक का उपयोग करते हुए, उन्होंने प्लास्टिक की गोली को एक धातु के कप में रखकर 600 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया, फिर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक को विशिष्ट तापमान पर जलाने पर गैस उत्सर्जन को कैप्चर किया.
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लेसेंटल ऊतक में सबसे अधिक पाया जाने वाला पॉलीमर पॉलीइथीन था, जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक बैग और बोतल बनाने में किया जाता है. यह कुल प्लास्टिक का 54% था. पॉलीविनाइल क्लोराइड (जिसे पीवीसी के नाम से जाना जाता है) और नायलॉन में से प्रत्येक कुल का लगभग 10% प्रतिनिधित्व करता था, और शेष नौ अन्य पॉलिमर से मिलकर बना था.