दृष्टि, स्पर्श, स्वाद, गंध और श्रवण के बाद इंसान में ‘छठी इंद्रिय’ (Sixth Sense) को लेकर समय-समय पर शोध होते रहे हैं। शरीर की आंतरिक दशा के बारे में हमारी समझ को अंत:विषय कहा जाता है। इसी को सिक्स्थ सेंस के तौर पर भी जाना जाता है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में कहा गया है कि महिलाओं का ‘सिक्स्थ सेंस’ पुरुषों से काफी अलग होता है। पुरुषों में यह महिलाओं के मुकाबले थोड़ा मजबूत पाया गया है।
‘द कनवर्सेशन’ में प्रकाशित शोध के मुताबिक सिक्स्थ सेंस शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। शोध में इस विषय पर पहले के 93 शोध के डेटा के विश्लेषण में पाया गया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अपने दिल की धडक़न और कुछ हद तक फेफड़ों के संकेंतों को सटीक रूप से कम महसूस करती हैं। इस अंतर के पीछे ब्लड प्रेशर या शरीर का वजन जैसे कारक नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण आनुवंशिकी, हार्मोन, व्यक्तित्व और तनाव हो सकता है।
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शोधकर्ताओं का कहना है कि सिक्स्थ सेंस को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की सही पहचान मानसिक स्वास्थ्य विकारों के प्रभावी उपचार के विकास में अहम साबित हो सकती है।
चिंता-अवसाद के हालात अपेक्षाकृत ज्यादा
यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में मनोविज्ञान की लेक्चरर जेनिफर मर्फी का कहना है कि महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को उनकी भावनाएं, सामाजिक और संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) हालात सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। उनमें चिंता और अवसाद के हालात पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होने से उनके ‘सिक्स्थ सेंस’ की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इस भिन्नता को और समझने के लिए आगे अध्ययन जरूरी है।
सोचने-समझने का स्तर अलग-अलग
शोधकर्ताओं का कहना है कि पुरुष और महिलाओं के सोचने-समझने का स्तर अलग-अलग होता है। यह भी उनके सिक्स्थ सेंस में भिन्नता का एक कारण हो सकता है। सिक्स्थ सेंस के कारण हर व्यक्ति को भविष्य में घटने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं का अनुभव होता है। सिक्स्थ सेंस की जानकारी बहुत कम लोगों को होती है, जबकि यह संवेदनाओं को समझने में पांच इंद्रियों से ज्यादा समर्थ है।