महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े जरूरी पहलुओं तथा स्वस्थ रहने के लिए रोकथाम के उपायों पर विचार किया जाना बहुत आवश्यक है। यह महिलाओं की उपलब्धियों और उनके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के अंतर संबंधों को उजागर करने का एक अवसर है। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए केवल उनकी उपलब्धियों को सम्मानित किया जाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए समय पर जांच के महत्व पर बल दिया जाना भी जरूरी है।
इसी आधार पर चलिए जानते हैं कि जेनेटिक टेस्टिंग किस प्रकार महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के विभिन्न चरणों में बीमारी के जोखिम की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। क्रोनिक समस्याओं से लेकर जीवनशैली की बीमारियों और प्रजनन की चुनौतियों तक, जेनेटिक टेस्टिंग 16 से 60 साल तक की आयु वाली महिलाओं के लिए एक शक्तिशाली टूल है। मेडजेनोम की मुख्य जीनोम एनालिसिस डॉक्टर संध्या नायर ने इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं।
कैंसर की स्क्रीनिंग (16 से 25 साल उम्र)
भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं, जिनकी संख्या 511.4 मिलियन है, को सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा है। हर साल लगभग 1,23,907 महिलाओं में इस बीमारी का निदान होता है, जिनमें से 77,348 महिलाओं की मौत हो जाती है। सर्वाइकल कैंसर भारत में 15 से 44 साल की महिलाओं में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है। सामान्य आबादी में लगभग 5.0 प्रतिशत महिलाओं को किसी दिए समय पर सर्वाइकल एचपीवी-16/18 संक्रमण होता है, जिनमें से 83.2 प्रतिशत इन्वेज़िव सर्वाइकल कैंसर एचपीवी 16 या 18 के कारण होते हैं।
लगभग ये सभी मामले एचपीवी संक्रमण के कारण होते हैं, जिसकी वजह से 16 से 25 साल की महिलाओं के लिए स्क्रीनिंग महत्वपूर्ण होती है क्योंकि युवावस्था में स्क्रीनिंग द्वारा समय पर उपाय किया जा सकता है और इलाज को काफी प्रभावी बनाया जा सकता है। समय पर एचपीवी की पहचान करके डॉक्टर बीमारी को सर्वाइकल कैंसर के रूप में बढ़ने से रोकने के लिए तुरंत उपाय कर सकते हैं।
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इसके अलावा, एचपीवी स्क्रीनिंग द्वारा युवा महिलाएं स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय ले सकती हैं और सक्रिय स्वास्थ्य विधियों को बढ़ावा दे सकती हैं। एचपीवी स्क्रीनिंग के साथ टीकाकरण कार्यक्रमों की मदद से सर्वाइकल कैंसर को रोकने में और ज्यादा प्रगति की जा सकती है, जिससे इस बीमारी को खत्म करने के वैश्विक प्रयास आगे बढ़ सकेंगे। स्तन के लगभग 3 प्रतिशत कैंसर (हर साल लगभग 7,500 महिलाएं) और 10 प्रतिशत ओवेरियन कैंसर (हर साल लगभग 2,000 महिलाएं) बीआरसीए1 और बीआरसीए2 जीन्स में अनुवांशिक म्यूटेशन के कारण होते हैं । इन म्यूटेशंस के लिए जेनेटिक स्क्रीनिंग को कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में शामिल कर लेने से समय पर पहचान करने के प्रयास बढ़ेंगे और व्यक्तिगत जोखिम आकलन एवं प्रबंधन की रणनीतियाँ संभव हो सकेंगी, जिससे कैंसर के खिलाफ लड़ाई और ज्यादा मजबूत हो सकेगी।
जेनेटिक डिजीज के लिए कैरियर स्क्रीनिंग (18 से 40 की उम्र में)
युवा महिलाओं में कैरियर स्क्रीनिंग में अनुवांशिक समस्याएं बच्चों में जाने के जोखिम का आकलन किया जाता है। डुशेन मस्कुलर डिस्ट्रफी, हेमोफिलिया, सिस्टिक फाईब्रोसिस, थैलेसेमिया और सिकल सेल एनीमिया दंपतियों को परिवार नियोजन के लिए सूचित निर्णय लेने में मदद करते हैं। कैरियर स्क्रीनिंग के अलावा, एडवांस्ड प्रि-नैटल स्क्रीनिंग की विधियाँ, जैसे गर्भावस्था के दौरान नॉन-इन्वेज़िव प्रिनैटल टेस्टिंग (एनआईपीटी) भ्रूण में क्रोमोसोमल विकारों के जोखिम की सटीक अनुवांशिक जानकारी प्रदान करती हैं, जिससे माता-पिता को जहाँ संभव हो, वहाँ समय पर उपाय करने में मदद मिलती है।
प्रिइंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (PGS/PGT) (20 से 40 साल उम्र में)
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी आई. वी. एफ. (इन विट्रो फर्टिलाईज़ेशन) ने गर्भधारण के लिए संघर्ष कर रहे दंपतियों को आशा की किरण प्रदान की है। जेनेटिक टेस्टिंग में हुई प्रगति बहुमूल्य समय और पैसे की बचत कर रही है तथा कई बार आई. वी. एफ. कराने के दौरान उत्पन्न शारीरिक और भावनात्मक तनाव को कम कर रही है। महिलाओं को गर्भधारण करने के सफर में एक ऐसा ही इनोवेशन प्रि-इंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग टेस्ट (पीजीटी) उपलब्ध है। पीजीटी की मदद से इन विट्रो फर्टिलाईज़ेशन (आई. वी. एफ.) द्वारा विकसित भ्रूण को गर्भ में स्थापित करने से पहले विभिन्न अनुवांशिक विकारों के लिए उसका परीक्षण संभव होता है, जिससे अनुवांशिक विकारों के बच्चों में जाने की संभावना को कम किया जा सकता है और एक स्वस्थ गर्भावस्था एवं एक स्वस्थ शिशु का जन्म सुनिश्चित किया जा सकता है। पीजीटी द्वारा बेहतर सफलता दर और गर्भपात का कम जोखिम सुनिश्चित किया जा सकता है। समय पर अनुवांशिक विकारों का निदान करके डॉक्टर व्यक्तिगत इलाज योजना का विकास कर सकते हैं और परिवार नियोजन के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
RHD स्क्रीनिंग (20 से 40 साल उम्र)
गर्भवती महिलाओं की आरएचडी स्क्रीनिंग का उद्देश्य माँ और भ्रूण के बीच आरएच फैक्टर असंगति का पता लगाना है, जिसकी वजह से गर्भ में जटिलताएं या गर्भपात हो सकता है। गर्भ के शुरुआती चरण में आरएचडी-नैगेटिव माँओं की पहचान करके डॉक्टर उन्हें आरएच इम्युनोग्लोबुलिन दे सकते हैं, ताकि विपरीत परिणामों को रोका जा सके और माँ एवं शिशु स्वस्थ रहें। यह स्क्रीनिंग गर्भ की रक्षा करने और आरएच फैक्टर असंगति के कारण होने वाले गर्भपात का जोखिम कम करने के लिए बहुत आवश्यक है, जिससे गर्भवती महिलाओं के लिए विस्तृत प्रि-नैटल केयर के महत्व को बल मिलता है।