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Medanta Hospital News: बच्चों में रीढ़ की हड्डी की समस्या से बचाव के लिए समय पर पहचान ज़रूरी

जटिल सर्जरी से तीन विभिन्न मरीजों में जागी नई उम्मीद, एक्सरसाइज़, लाइफ़स्टाइल, खान पान का ध्यान रखकर स्पाइन को रखें स्वस्थ

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Medanta Hospital Lucknow: गोरखपुर निवासी 12 वर्षीय मोहिनी जन्म से ही दूसरे बच्चों से अलग थीं। उनके शरीर का ऊपरी हिस्सा आगे की ओर झुका हुआ था और पीठ की ओर एक बड़ा उभार (कूबड़) था जो कपड़े पहनने के बाद भी छिपाया नहीं जा सकता था। इससे न सिर्फ उन्हें चलने फिरने में परेशानी होती थी बल्कि अपनी उम्र में बच्चों में चर्चा का विषय थीं। इस शारीरिक और मानसिक पीड़ा को उन्होंने लंबे समय तक झेला। सिर्फ मोहिनी ही नहीं बल्कि उनके जैसे कई बच्चे और बड़े रीढ़ में झुकाव की समस्या से जूझ रहे हैं। इस तरह की परेशानी से जूझने वाले मरीजों के लिए मेदांता लखनऊ में उम्मीद की नई किरण जग रही है, जहां इस जटिल सर्जरी का सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है।

मेदांता लखनऊ में मरीजों को मिल रही उम्मीद की नई किरण | Medanta Hospital Lucknow

मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के ऑर्थोपेडिक्स स्पाइन सर्जरी डिपार्टमेंट के एसोसिएट डायरेक्टर, डॉ. श्वेताभ वर्मा ने बताया कि मोहिनी के केस में हड्डी का कुछ हिस्सा निकालकर उसमें रॉड्स और स्क्रू लगाए गए। सर्जरी के बाद उनका कूबड़ काफी हद तक कम हो गया है। पहले जहां 90 डिग्री का कर्व था, अब वह 40 डिग्री से भी कम रह गया है। अब वह सामान्य जीवन जी पा रही हैं। रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियां सिर्फ वयस्कों तक सीमित नहीं हैं, बच्चों और किशोरों में भी ये समस्याएं तेजी से सामने आ रही हैं। समय पर पहचान और सही इलाज न मिलने पर ये दिक्कतें न सिर्फ बच्चों के आत्मविश्वास को प्रभावित करती हैं बल्कि उनकी चलने-फिरने की क्षमता और जीवन की गुणवत्ता पर भी स्थायी असर डाल सकती हैं।

Medanta Hospital News: बच्चों में रीढ़ की हड्डी की समस्या से बचाव के लिए समय पर पहचान ज़रूरी

समय पर पहचान जरूरी | Medanta Hospital Lucknow

बच्चों में रीढ़ की हड्डी की विकृतियां कई बार जन्मजात होती हैं और कई बार उम्र बढ़ने के साथ विकसित होती हैं। असामान्य रूप से टेढ़ी होती हड्डी को स्कोलियोसिस कहते हैं, वहीं जन्म से रीढ़ की हड्डी का आगे की ओर झुकाव काइफोसिस कहलाता है। इन स्थितियों में बच्चों को चलने, सीधा खड़ा होने और शारीरिक संतुलन में दिक्कत हो सकती है। इससे सेहत पर नकारात्मक प्रभाव के साथ आत्मविश्वास भी प्रभावित होता है। इस तरह की समस्या जन्मजात हो सकती है, 3 से 10 वर्ष की उम्र में विकसित हो सकती है या 10 से 12 वर्ष के बीच दिखाई दे सकती है। हर स्थिति का मैनेजमेंट अलग होता है। खासकर 3 से 10 साल के बच्चों में इसका समय पर पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए अभिभावकों को सावधान रहना चाहिए। अगर बच्चा टेढ़ा खड़ा हो रहा है, उसकी चाल बदल रही है, एक कंधा अधिक झुका हुआ है, कमर तिरछी है या पीठ पर बालों का गुच्छा या धब्बे दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए ताकि समस्या की पुष्टि हो सके।

जटिल सर्जरी से समान्य जीवन संभव | Medanta Hospital Lucknow

डॉ. श्वेताभ ने बताया कि हाल ही में हमने दो स्कोलियोसिस और एक काइफोसिस के मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया है। इसमें एक बच्ची को 10 साल की उम्र के बाद यह समस्या हुई। मरीज की रीढ़ की हड्डी में कर्व 70 से 80 डिग्री तक पहुंच गया था। उस समय महावसरी शुरू होने वाली थी। जिन लड़कियों में पीरियड शुरू होने वाला हो और उनकी डिफॉर्मिटी बहुत ज्यादा हो, उन्हें तुरंत ऑपरेट करना जरूरी होता है क्योंकि पीरियड शुरू होने के बाद यह झुकाव तेजी से बढ़ता है। वहीं एक 12-13 साल का लड़का था, जिसे काइफोसिस था। उसकी दो हड्डियां जन्म से ही जुड़ी हुई थीं। जैसे ही उसकी लंबाई बढ़नी शुरू हुई, पीठ में कूबड़ और ज्यादा उभरने लगा। जांच के बाद सर्जरी की गई, हड्डियों को काटकर रॉड लगाई गई और रीढ़ को सीधा किया गया।

स्पाइन की देखभाल के लिए नियमित व्यायाम जरूरी | Medanta Hospital Lucknow

आजकल व्यस्त जीवनशैली के कारण लगभग हर व्यक्ति कभी न कभी स्पाइन दर्द की शिकायत करता है। बच्चों में भारी स्कूल बैग और गलत तरीके से पढ़ाई करने की आदतें, वहीं वयस्कों में लंबे समय तक लैपटॉप या कंप्यूटर पर काम करने की आदतें स्पाइन को नुकसान पहुंचाती हैं। गलत खानपान और व्यायाम की कमी से भी मांसपेशियां कमजोर होती हैं। कई बार लोग बहुत नरम गद्दे इस्तेमाल करते हैं, जो रीढ़ को सपोर्ट नहीं देते। स्वस्थ स्पाइन के लिए संतुलित आहार, सही पोश्चर, नियमित व्यायाम और सही जीवनशैली जरूरी है। तला-भुना और अस्वस्थ खाना बच्चों में वजन बढ़ाता है, जिससे स्पाइन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और भविष्य में सायटिका, डिस्क समेत अन्य समस्याएं बढ़ती हैं।

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