Mental Health Awareness Month के तहत आज बात करेंगे सिजोफ्रेनिया की. सिजोफ्रेनिया एक मेंटल डिजीज है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के सोचने-समझने के तरीके और व्यवहार में बदलाव आ जाता है. सिजोफ्रेनिया का मरीज़ बिना किसी वजह के हर बात व व्यक्ति पर शक करता और अपनी ही दुनिया में खोया रहता है. ऐसे लोगों को कुछ ऐसी आवाजें सुनाई देती है जो वास्तव में एग्ज़िस्ट ही नहीं करतीं. इसके अलावा जो लोग सिजोफ्रेनिया से पीड़ित होते हैं उन्हें हमेशा यही लगता रहता है कि कोई उनके खिलाफ साजिश कर रहा है या उन्हें गलत तरीके से फंसाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, पहले इस बीमारी के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन वर्तमान में इसको लेकर जागरूकता बढ़ी है.
सिज़ोफ्रेनिया एक मेंटल डिसऑर्डर है जो किसी व्यक्ति में मानसिक विकार का वर्णन करता है. सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज़ एक तरह की काल्पनिक दुनिया या भ्रम की स्थिति में रहते हैं. उनका नज़रिया वास्तविक दुनिया से अलग होता है. कई लोग इस बीमारी को विभाजित व्यक्तित्व मानते हैं जबकि यह एक अलग तरह का विकार है. ये लोग अपनी भावनाओं को ठीक से एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं. वे ज़िंदगी में रुचि खो देते हैं और किसी भी चीज़ को लेकर बहुत भावुक हो जाते हैं. इस मानसिक विकार पर जानकारी साझा करने के लिए आरोग्य इंडिया प्लेटफोर्म से जुड़े हैं डॉक्टर एस बी मिश्रा. जानकारी के लिए बता दें, डॉक्टर एस बी मिश्रा लखनऊ में एलडीए कॉलोनी स्थित माइंड एंड मूड केयर साइकेट्री क्लीनिक के एम डी (Psychiatrist) हैं.
डॉक्टर एस बी मिश्रा बताते हैं कि सिज़ोफ्रेनिया कोई नई बीमारी नहीं है. पहले इसे पहचानने में लोगों को इसलिए दिक्कत होती थी क्योंकि इसके लक्षण ही ऐसे होते हैं कि लोगों को लगता है कोई ऊपरी चक्कर या भूत प्रेत का साया है. लेकिन अब लोगों को इस बारे में अवेयरनेस है. इसके लक्षणों की बात करें तो सबसे पहला लक्षण यही है कि इंसान के व्यवहार में कुछ बदलाव आने लगते हैं. उन बदलावों में सबसे आम लक्षण है कि व्यक्ति शक करना शुरू कर देता है, डरना शुरू कर देता है. उसको ऐसा लगने लगता है कि लोग उसके खिलाफ बातें कर रहे हैं, साजिश कर रहे हैं.
इस मानसिक विकार के मुख्य लक्षण क्या हैं, विकार का कारण और इसका इलाज क्या है?
सिजोफ्रेनिया में दो लक्षण होते हैं एक हालोसिनेसन और दूसरा डिलूजन. सिजोफ्रेनिया में मरीज कॉमनली प्रेजेंट करते हैं. इसके कारणों की बात करें तो ब्रेन में कुछ न्यूरो ट्रांसमीटर होते हैं जैसे डोपामिन की अधिकता हो जाती है. कुछ नशे की चीजें जैसे गांजा का नशा करने से भी सिजोफ्रेनिया हो जाता है. खास कर उनके लिए जो जेनेटिकली प्रोन हैं, जिनकी सिजोफ्रनिया की फैमिली हिस्ट्री रही है, उन लोगों में कैनबिस यूज करने से ये सिम्टम्स जल्दी डेवलप हो जाते हैं.
इसका इलाज पूरी तरह से संभव है, इसकी दवायें उपलब्ध हैं. अगर किसी व्यक्ति में इसके लक्षण दिखते हैं तो जरूरी है कि लोगों को जागरूक करना चाहिए. समस्या तब होती है जब लोगों को लगता है कि मरीज को ऊपरी चक्कर है, कोई भूत प्रेत आ गया है. क्योंकि मरीज खुद से बात कर रहा होता है, खुद से ही हंस रहा होता है. ऐसे में मरीज को लेकर झाड़ फूक के लिए चले जाते हैं. इसके चक्कर में काफी समय बर्बाद हो जाता है जो नहीं होना चाहिए. इलाज में जितनी देरी होगी, मरीज के लिए उतना ही मुश्किल होगा.
मानसिक विकारों को ऊपरी बाधाओं के तौर पर ही क्यों देखा जाता है?
झाड़फूक तब शुरू हुआ था, जब लोगों को इसकी समझ नहीं थी. ऐसी चीजों को देखकर कोई भी सोचेगा कि भूत प्रेत का साया है. पर साइंटिफिक डेवलपमेंट के बाद लोगों को इस बारे में जानकारी हुई है. लोगों को चाहिए कि मरीज को समस्या होने पर इलाज करायें.