दुनिया में जब भी जानलेवा बीमारियों की बात उठती है तो एचआईवी वायरस यानी एड्स की बीमारी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. देखा जाए तो काफी प्रयासों के बावजूद आज तक वैज्ञानिक जानलेवा एड्स से बचाव का टीका बना नहीं पाए हैं. एड्स के प्रति जनता को जागरूक करने के लिए और वैज्ञानिकों को एड्स का टीका बनाने के प्रयासों को सराहना और प्रोत्साहन देने के लिए हर साल 18 मई को दुनिया भर में विश्व एड्स वैक्सीन डे मनाया जाता है.
पूरी दुनिया में कितने एड्स के मरीज?
आपको बता दें कि एचआईवी ( HIV) एक वैश्विक महामारी के तौर पर घोषित बीमारी है जिससे लाखों लोगों की मौत हो चुकी है. WHO के हालिया आंकड़ों से सामने आया है कि फिलहाल विश्व में लगभग 38.4 मिलियन लोग एचआईवी के वायरस से पीड़ित हैं, खास बात ये है कि इनमें से करीब दो-तिहाई लोग अफ्रीकी देशों में निवास करते हैं. देखा जाए तो दुनिया में हर सात में से लगभग एक शख्स एड्स की बीमारी का शिकार है. जानकारी के अभाव में इस बीमारी का विस्तार हुआ है. इसके प्रति लापरवाही, बचाव के तरीके और इसके प्रति जानकारी के अभाव के साथ-साथ इसके इलाज की कमी के चलते ये बीमारी भयावह रूप से फैली है.
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पहली बार कब मनाया गया यह दिन?
पहला एड्स डे 1998 में 18 मई के दिन मनाया गया था. इससे पहले इस दिन को मनाने की जरूरत मॉर्गन यूनिवर्सिटी में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भाषण के बाद 1997 में महसूस की गई. बिल क्लिटंन ने अपने भाषण में एड्स के निराकरण के लिए इसका टीका बनाने की जरूरत पर बल दिया था. इसके बाद एड्स की वैक्सीन बनाने के लिए चल रहे अनुसंधानों और वैज्ञानिक परीक्षणों को बल देने के लिए इस दिन को चुना गया.
विश्व एड्स वैक्सीन दिवस का क्या महत्व है?
विश्व एड्स वैक्सीन दिवस का महत्व लोगों को एचआईवी के प्रति जागरूक करना है. इस खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए टीकाकरण करवाना है. दुनियाभर में लोगों को एड्स वैक्सीन के विकास को बढ़ावा देने के लिए इस दिन को मनाया जाता है. एचआईवी एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है. दिसंबर 2019 तक लगभग 38 मिलियन लोग एचआईवी बीमारी के साथ जी रहे थे. ऐसे में जरूरी है कि इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाई जाए और इसकी वैक्सीन को लेकर भी अवेयरनेस हो.