बदलती जीवनशैली के बीच पिछले कुछ वक्त में कई ऐसी बीमारियां तेजी से फैली हैं जो पहले कभी नहीं सुनने को मिली थीं. ऐसा ही कुछ है ‘ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर’. पिछले कुछ सालों में इस डिसऑर्डर के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिली है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पीड़ित के व्यवहार पर असर डालता है. यह बच्चों को ज्यादा ट्रिगर करता है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम के लक्षण बच्चों में बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं. ऐसे में इसका समय रहते इलाज कराना जरूरी है नहीं तो इससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है.
ओनली माई हेल्थ की खबर के अनुसार ऑटिज्म रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में हर 10,000 बच्चों में से लगभग 100 बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार ये डिसऑर्डर लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में चार गुना अधिक पाया गया हैं.
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक प्रकार की डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी है जिसमें एक व्यक्ति ठीक प्रकार से कम्यूनिकेट करने और खुद को एक्सप्रेस करने की क्षमता खो देता है. ऑटिज्म के तीन अलग-अलग प्रकार हैं जिनमें ऑटिस्टिक डिसऑर्डर, एस्परगर सिंड्रोम और पेरवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर शामिल हैं.
वैश्विक स्तर पर बच्चों में देखी जा रही इस समस्या को लेकर लोगों को जागरूक करने, समय पर उपचार को लेकर प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल दो अप्रैल को ‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है. इस बार इसकी थीम Moving From Surviving to Thriving रखी गई है. आज आरोग्य इंडिया आपको विभिन्न एक्सपर्ट्स के माध्यम से यह बताने और समझाने की कोशिश करेगा की आखिर आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर क्या है? इसकी पहचान कैसी की जाती है. इसके इलाज में किसकी अहम् भूमिका होती है और आखिर कितने दिनों तक इस डिसऑर्डर का इलाज चलता है. शुरू करते हैं हमारी विशेष पेशकश….
इस बीमारी का पता कैसे लगायें?
स्टेप बाई स्टेप समझते हैं कि आखिर आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में कौन से विभाग के डॉक्टर्स की जरूरत पड़ती है. सबसे पहले जानते हैं कि इस स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का पता लगाने में बाल रोग विशेषज्ञ की क्या भूमिका रहती है. ये बताने के लिए हमारे साथ जुडी हैं डॉ माला कुमार. ये लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट की हेड हैं.
डॉ माला कुमार के मुताबिक, ऑटिज्म एक डेवलेपमेंटल डिसऑर्डर है. आज से कुछ साल पहले तक पीडियाट्रिशन ऑटिज्म का डायग्नोसिस नहीं बनाते थे. लेकिन आजकल डायग्नोसिस बहुत आसानी से बन जाते हैं. अब डॉक्टर में और जनता में भी इसकी अवेयरनेस पहले से ज्यादा बन जाती है. इसलिए ऑटिज्म का क्या कराण है, यह कहना मुश्किल होता है.
‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ को लेकर डॉ माला कुमार ने अभिभावकों से कुछ अपील भी की है. विश्व ऑटिज्म दिवस के मौके पर डॉ माला कुमार लोगों को संदेश देते हुए कहती हैं कि अगर आपका बच्चा ऑटिस्टिक है तो आप हताश न हों. बच्चे का सही इलाज करें, सही थेरेपी करें, आपको रिजल्ट्स अवश्य मिलेंगे.
आपका बच्चा Autism से पीड़ित है या नहीं, कैसे कंफर्म होगा?
अब बारी आती है कि अगर आपके बच्चे में आटिज्म के लक्षण नज़र आ रहे हैं लेकिन कन्फर्म होने में दिक्कते आ रही हैं, इसका कन्फर्मेशन कौन करेगा. आपका बच्चा आटिज्म से पीड़ित है या नहीं, ये इसको कन्फर्म कराने के लिए आपको Physiatrist के पास जाना होगा. अब जानते हैं कि आखिर Physiatrist का क्या रोल है. इसको बताने और समझाने के लिए आरोग्य इंडिया से जुड़े हैं डॉ अमित आर्या. बता दें कि डॉ अमित केजीएमयू के Physiatrist डिपार्टमेंट के थ्रू पिछले कई सालों से आटिज्म से पीड़ित बच्चों को सही दिशा प्रदान कर रहे हैं.
साइकेट्रिस्ट मानसिक और व्यावहारिक बीमारियों को पहचानने में ट्रेंड होते हैं. जैसा कि ऑटिज्म के कई लक्षण व्यावहारिक होते हैं. जिन्हें चाइल्ड साइकेट्रिस्ट पहुत जल्दी पहचान लेते हैं. वहीं कई सारे लक्षण इस तरह के होते हैं जो उनके टीचर्स, पेरेंट्स, पीडियाट्रिशन या काउंसलर्स भी उनको पहचान पायें. पर उनको पहचानने के बाद डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया के बेसिस पर हम जो डायग्नोसिस बनाते हैं, वो डीसीएमएफ और आईसीडी के बेसिस पर बनाते हैं. साइकेट्रिस्ट इन डायग्नोसिस के क्राईटेरिया को अप्लाई करने में ट्रेंड होते हैं.
डॉ अमित आर्या ने भी ‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ को लेकर अभिभावकों से कुछ अपील की है. अमित आर्या कहते हैं कि सबसे पहले आप अपने बच्चे की स्ट्रेंथ को पहचानें, उनके पॉजिटिव स्ट्रेंथ को पहचानें आटिज्म में कई बच्चे ऐसे होते हैं जिनमें कई सेव स्किल्स होती हैं, बच्चे किसी चीज को याद रखने में कुशल होते हैं. कई बच्चे रूटीन को फॉलो करने में अच्छे होते हैं. तो ऐसे बच्चों को पहचानें जिससे ऑटिज्म को हराया जा सके.
कब शुरू किया जाता है इलाज?
अब बारी आती है कि आखिर आटिज्म से जूझ रहे बच्चों के इलाज की. यानी बाल रोग विशेषज्ञ आपको लक्षणों की पहचान कराते हैं, Physiatrist इसे टेस्ट के माध्यम से कन्फर्म करते हैं और इलाज शुरू करते हैं. वहीं, इससे निजात पाने के लिए थेरेपी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है. इस पर भी बात करनी जरूरी है. पिछले चार सालों से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर ही नहीं अन्य डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लेकर चल रहे दिव्यांशु कुमार से जानते हैं…
दिव्यांशु कुमार बताते हैं कि ‘द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर’ द होप फाउंडेशन के तहत चलने वाला केन्द्र है. जिसमें सिर्फ ऑटिज्म ही नहीं, जिसमें हम और भी बच्चों पर काम करते हैं. ऑटिज्म एक ऐसा डिसऑर्डर हैं जिसमें कोई व्यक्ति या बच्चा आत्मनिर्भर रहता है, उसे पूरी दुनिया से कोई वास्ता नहीं रहता. वो अपने में ही खेलेगा, अपने में ही बात करेगा. उसे सोशल एंगजाइटी रहती है, भीड़ वाले इलाके में जायेगा तो रोयेगा, उसे अन्कंफर्टेबल महसूस होता है और इसी वजह से कई बार बच्चों का डेवलपमेंट डिले हो जाता है. उसी डेवलपमेंट डिले पर हमारे सेंटर में ऑक्यूपेशनल थेरेपी होती हैं. जो इन बच्चों को न्यूरो डेवलेपमेंट टेक्निकल सेंसरी इंटीग्रेशन के जरिए ऑटिज्म के उस स्पेक्ट्रम से बाहर निकालन की कोशिश करते हैं. जब बच्चे उस स्पेक्ट्रम से धीरे-धीरे बाहर निकलते हैं तो हमारे डेवलेपमेंट थेरेपिस्ट उन बच्चों के डेवलेपमेंट डिले को ओवरकम करते हुए उनको मेन स्ट्रीम में लाने की कोशिश करते हैं.
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ को लेकर अभिभावकों से दिव्यांशु कुमार ने भी कुछ अपील की है. दिव्यांशु कुमार लोगों को मैसेज देते हुए कहते हैं कि ऑटिज्म के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई जाये, इसके तहत हम पूरे दो महीने लखनऊ में जगह-जगह स्कूलों, अस्पतालों और क्लीनिकों में जाकर नि:शुल्क असेसमेंट कैंप लगायेंगे. साथ ही जगह-जगह कैनोपी लगाकर भी बच्चों को नि:शुल्क असेसमेंट दिया जायेगा. बच्चों के पेरेंट्स और केयर गिवर्स को काउंसिलिंग दी जायेगी कि बच्चों को कैसे मेन स्ट्रीम में लाया जाये. साथ ही दिव्यांशु, अभिभावकों औरकेयर गिवर्स से अपील करते हैं कि ऑटिज्म कोई लाइलाज बीमारी नहीं हैं, बल्कि ये सिर्फ डिसऑर्डर है. इसको जब हम ऑर्डर में लायेंगे तो बच्चे मेन स्ट्रीम में बहुत कमाल करेंगे.
आटिज्म से पीड़ित बच्चों की कैसी हो डाईट?
अब यह भी जरूरी है कि आखिर आटिज्म से पीड़ित बच्चों की डाईट को कितनी देखरेख की जरूरत है. यह बतायेंगी डॉ स्मिता सिंह, बता दें कि डॉ स्मिता सिंह लखनऊ के मिडलैंड हॉस्पिटल में चीफ डाईटीशियन के पद पर अपनी सेवाएं दे रहीं हैं, वहीं वे लखनऊ में ही Wellness Diet Clinic का भी संचालन कर रही हैं.
डॉक्टर स्मिता सिंह बातचीत करते हुए बताती हैं कि किसी ऑटिस्टिक इंडिविजुअल की डाइट प्लान करते समय कुछ चीजों पर ध्यान देना चाहिए. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि ऑटिस्टिक की डाइट ऐसी हो जिससे उस इंडिविजुअल की गट हेल्थ इंप्रूव हो सके. इनके पास इंफ्लामेशन के चांसेज बहुत सारे होते हैं, इसलिए जितने भी इंफ्लामेटरी मार्कर्स हैं, उनको कंट्रोल कर पायें. ब्रेन हेल्थ के लिए जितने भी न्यूट्रिएंट्स हैं, वो इस डाइट में होने चाहिए. वहीं सबसे महत्वपूर्ण है आपकी इम्यूनिटी, इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए ऐसी डाइट बनायें जिसमें ग्लूटेन जरूर होना चाहिए. ग्लूटेन पाने के लिए आपको गेंहू और राई लेना चाहिए. साथ ही अनाजों में चावल, ओट्स, बाजरा और मक्का लेना चाहिए.