उम्र के साथ आंखों की रोशनी का कम होना तो आम बात है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ लगातार चश्मे का नंबर बढ़ता है तो आपको सतर्क हो जाने की जरूरत है. क्योंकि वर्तमान में काला पानी जैसी समस्या यानि ग्लूकोमा संबंधित बीमारी के आप शिकार हो सकते हैं.
इस बीमारी का पता लगाने के लिए आपको समय-समय पर आंखों के विशेषज्ञ के पास जाकर अपनी स्क्रीनिंग करवानी होगी ताकि इस बीमारी के बारे में पता चल सके जिससे समय पर इलाज हो सके. ग्लूकोमा के बारे में आज भी लोग जागरूक नहीं है. यही वजह है कि हर साल 12 मार्च यानि आज ही के दिन वर्ल्ड ग्लूकोमा डे और वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जाता है. ग्लूकोमा रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक भारत में 1 करोड़ से ज्यादा लोग और दुनियाभर में 8 करोड़ से ज्यादा लोग ग्लूकोमा के शिकार हैं.
जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल के नेत्ररोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरविंद चौहान के मुताबिक, ग्लूकोमा आंखों की रोशनी जाने का सबसे बड़ा कारण है. आंखों से संबंधित ओपीडी में प्रतिदिन 15 से 20 मरीज ऐसे सामने आ रहे हैं, जिनकी स्क्रीनिंग के साथ ही उनका इलाज इत्यादि किया जा रहा है. भारत सरकार की ओर से इसको लेकर अभियान चलाया जा रहा है, इसमें 10 मार्च से 16 मार्च तक लोगों को जागरूक किया जा रहा है.
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क्या है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा को काला मोतिया भी कहा जाता है, ये आंखों की ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे आंखों की रोशनी छीन लेती है. इसमें हमारी ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है. ऑप्टिक नर्व्स ही हमारे रेटिना को दिमाग से जोड़ती है. इनके डैमेज हो जाने से दिमाग को संकेत मिलना बंद हो जाते हैं, जिससे दिखना बंद हो जाता है. इस बीमारी के गंभीर हो जाने पर दृष्टि को वापस लाना असंभव हो जाता है. क्योंकि ये नर्व ही आंखों से दिख रही छवि को सिग्नल के रूप में ले जाकर दिमाग तक पहुंचाती है, जिसके बाद हम देख पाते हैं.
इन चीजों के ज्यादा इस्तेमाल से परेशानी
आमतौर पर आंखों पर प्रेशर बढ़ने से ग्लूकोमा होता है. इसे इंट्राऑकुलर प्रेशर भी कहा जाता है. स्वस्थ आंखें फ्लूड से भरी होती हैं. ये लिक्विड आंखों को प्रेशर से बचाने में मदद करता है. इसलिए लिक्विड हमेशा बनता रहता है और फिर बाहर निकलता रहता है. ये नेचुरल साइकिल ऐसे ही चलती रहती है. जहां इस साइकिल का बैलेंस बिगड़ता है, वैसे ही आंखों पर प्रेशर पड़ने लगता है. इसके साथ कई अंदरुनी कारण भी जिम्मेदार हैं जैसे- अनहेल्दी डाइट, मोबाइल-लैपटॉप का अत्यधिक इस्तेमाल.
60 साल से ज्यादा मरीजों में यह बीमारी
काले मोतियाबिंद के ज्यादातर मरीज बूढ़े ही होते हैं. 60 साल से ज्यादा के लोगों में यह बीमारी काफी आम है. ग्लूकोमा होने पर बुजुर्गों की आंखों की रोशनी भी जा सकती है. कुछ लोगों में ये बीमारी आनुवंशिक भी हो सकती है. यानी, अगर आपके परिवार में किसी को ग्लूकोमा हुआ है, तो आपको भी इसके होने की आशंका बढ़ जाती है.