छींक एक ऐसी स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो बिन बताए कभी भी आ सकती है। स्नीजिंग को स्टरन्यूटेशन भी कहा जाता है जो धूल, मिट्टी, बारिश और सर्द हवाओं के चलते अक्सर लोगों की परेशानी का कारण बनने लगती है। लगातार छींक आना चिंताएं बढ़ा देती है। दरअसल, छींक आने से गले और नाक में मौजूद डस्ट पार्टिकल्स बाहर निकल जाते हैं, जिससे व्यक्ति सुकून महसूस करता है।
क्यों आती है ज्यादा छींक?
इस बारे में पल्मोनोलॉजी, कंसलटेंट, इंटरनल मेडिसिन डॉ अवि कुमार कहते हैं, “छींक वास्तव में शरीर को राहत देने वाली एक प्रक्रिया है। छींकने से नाक और गले में मौजूद इरीटेंट्स से राहत मिल जाती है। मगर लगातार छींक आना कुछ अंतर्निहित समस्याओं का संकेत हो सकता है। वहीं जब आप छींकते हैं, तो इसके कारण कई और लोग उन संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं, जिनसे आप पीड़ित हैं।”
वॉशिंगटन युनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के अनुसार, एक छींक आने से 20,000 वायरस से भरपूर बूंदों का निर्माण होता है, जो 10 मिनट तक हवा में मौजूद रहती हैं। वहीं खांसने से 3,000 ड्रॉपलेट्स हवा में कुछ मिनटों तक पाए जाते हैं। ऐसे में खांसने और छींकने से बचने के लिए इसके कारण और बचाव के उपायों को समझना आवश्यक है।
जब आपको लगातार छींक आती है, तब इसके कुछ नकारात्मक प्रभावों का भी सामना करना पड़ता है। कुछ लोगों को इस दौरान सांस फूलने का भी अनुभव होता है। इसलिए जरूरी है कि छींक को ट्रिगर करने वाले कारकों को जानकर उनसे बचा जाए। धूल, मिट्टी, पोलन और मौसम में आने वाला बदलाव, कॉमन कारक हैं जो लगातार छींक का कारण बनते हैं।
क्या हैं छींक आने के कारण?
एलर्जी
डॉ अवि कुमार बताते हैं कि अधिकतर लोगों को डस्ट और पोलन एलर्जी का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा पेट्स यानि पालतू पशुओं के संपर्क में आने से भी छींकने की समस्या बढ़ने लगती है। दरअसल, नाक के ज़रिए इरिटेंटस गले में पहुंचकर छींक का कारण साबित होते हैं।
मौसम में बदलाव
कभी गर्मी, कभी सर्दी, तो कभी बरसात होने से स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव नज़र आता है। एनआईएच की रिसर्च के अनुसार, मौसम में बदलाव आने से रेस्पिरेटरी एलर्जी बढ़ने लगती है। इसके चलते अपर रेस्पिरेटी ट्रैक में रनिंग नोज़, स्नीजिंग और लाल व इची आइज़ की संभावना बढ़ जाती है।
Also Read – 20 साल में 39 बार इस शख्स ने किया ब्लड डोनेट, लोगों के लिए बने प्रेरणास्रोत
एयर पॉल्यूशन
डॉ अवि कुमार के मुताबिक, घर से बाहते निकलते ही पाल्यूटेंटस का प्रभाव शरीर पर तेज़ी से बढ़ने लगता है। इससे नाक में जलन, सूजन और इरिटेशन की समस्या गले, आंखों और कान में खराश और छींक का कारण बनने लगती है। इसके अलावा ब्रीदिंग प्रॉबल्म और राइनीटिस की समस्या को भी बढ़ा देती है। ऐसे से घर से बाहर निकलने से पहले अपने मुंह को ढककर रखें।
वेंटिलेशन की कमी
अमूमन बदलते लाइफस्टाइल के साथ घरों में खिड़कियों और रोशनदान का चलन खत्म हो रहा है। इससे प्रॉपर वेंटिलेशन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पुअर वेंटिलेशन घुटन, छींक और सिरदर्द की समस्या को बढ़ाने लगती है। डॉ अवि कुमार बताते हैं कि वेंटिलेशन की कमी के चलते इनडोर बैक्टीरिया, डस्ट माइट्स जो तकियों में पाए जाते हैं, उन वायरस का सामना करना पड़ता है।
खान-पान में लापरवाही
कुछ फूड्स भी एलर्जी की समस्या को बढ़ावा देते हैं, जिससे बार-बार छींकों की समस्या का सामना करना पड़ता है। वे फूड्स जो एलर्जी की समस्या को बढ़ा देते हैं। उन्हें खाने से परहेज़ करें। इसके अलावा अत्यधिक ठंडा खाने से भी बचें।
क्या है बार-बार छींकों से बचने का उपाय?
ट्रिगर प्वाइंटस पहचाने
सबसे पहले इस बात की जानकारी करें कि किन कारणों से बार-बार छींक आने की समस्या हो रही है। कारणों की रोकथाम कर समस्या को सुलझाने की ओर पहला कदम बढ़ायें। बैक्टीरिया, पोलन और डस्ट जैसी चीजों से खुद को सुरक्षित करें।
एअर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें
घरों में बढ़ने वाली वेंटिलेशन की कमी की रोकथाम के लिए एअर प्यूरिफायर की मदद लें। अपने आसपास के माहौल को बैक्टीरिया से मुक्त करने के लिए रात में एअर प्यूरिफायर लगाकर सो जाएं। इससे सुबह उठते ही छींकों की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
डॉक्टर से सही नेज़ल स्प्रे लें
इस बारे में डॉ अवि कुमार बताते हैं कि नाक के रास्ते गले में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया को दूर करने के लिए एंटी एलर्जिंक नेज़ल स्प्रे का इस्तेमाल करें। इससे धूल मिट्टी के कारण बढ़ने वाली इरिटेशन और नेज़ल इचिंग से राहत मिल जाती है।
घर और अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें
इंडोर बैक्टीरिया और डस्ट माइट्स से बचने के लिए नियमित तौर पर क्लीनिंग करें। चादर, परदे और पिलो कवर्स को रोज़ाना बदलें। इसके अलावा घर के सामान को वैक्यूम क्लीनर्स की मदद से साप्ताहिक साफ करें। अपने दफ्तर, जिम, लॉन आदि क्षेत्रों को भी, जहां आप हर रोज़ जाते हैं, वहां भी सफाई का ध्यान रखें।