जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण गर्मी में वृद्धि होती है और एयर क्वालिटी खराब होती है। मौसम में बदलाव वेक्टर-जनित रोग संचरण, पानी की गुणवत्ता में कमी और खाद्य सुरक्षा में कमी का कारण भी बन सकता है। यह जैविक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों से पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। भारत में किया गया हाल का अध्ययन यह बताता है कि पर्यावरण में हो रहे तेजी से परिवर्तन के कारण तापमान में बहुत अधिक वृद्धि हो रही है। बहुत अधिक तापमान गर्भवती स्त्रियों के लिए गंभीर जोखिम का कारण बन सकता है।
क्या कहता है अध्ययन
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में तापमान में वृद्धि से गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो गया है। इसमें समय से पहले प्रसव, गर्भकालीन हाई ब्लड प्रेशर और प्री-एक्लेमप्सिया भी शामिल हैं। भारत में कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य से यह पहला भारतीय अध्ययन है। इस तरह की स्टडी भारत में पहले कभी नहीं की गई है।
स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और शारीरिक कारकों के कारण पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन से लिंग आधारित स्वास्थ्य असमानताओं का खतरा बढ़ जाता है। खासकर भारत और अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
गर्भवती महिलाओं को क्यों अधिक खतरा
जियो हेल्थ जर्नल के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को गैर-गर्भवती महिलाओं की तुलना में गर्मी से थकावट, हीट स्ट्रोक या अन्य गर्मी से संबंधित बीमारी होने की संभावना अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि गर्भवती महिला के शरीर और गर्भ में विकसित हो रहे बच्चे दोनों को ठंडा करने के लिए उनके शरीर को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। गर्भवती महिलाओं में डीहाइड्रेशन होने की संभावना अधिक होती है।
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औसत से अधिक तापमान से गर्भवती महिलाओं सहित कमजोर लोगों में गर्मी से होनी वाली बीमारियां और मौत होने की आशंका बढ़ जाती है। अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से गर्भवती महिलाओं में डीहाइड्रेशन से किडनी फेलियर की संभावना भी बढ़ सकती है।
जल्दी प्रसव होने की संभावना
गर्भावस्था की शुरुआत में अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से गर्भपात और समय से पहले जन्म का खतरा भी बढ़ सकता है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एक अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था के पहले सात हफ्तों के दौरान अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने वाली महिलाओं में जल्दी प्रसव होने की संभावना 11 प्रतिशत अधिक होती है।
थर्ड ट्रिमस्टर में चलता है बच्चे को गर्मी का पता
अजन्मे शिशुओं के ब्रेन स्कैन से पता चलता है कि भ्रूण को 30 सप्ताह के बाद तक दर्द का एहसास नहीं होता है, जब तक कि सोमैटोसेंसरी न्यूरल पाथवे विकसित होना समाप्त नहीं हो जाते हैं। तीसरी तिमाही के मध्य तक बच्चा गर्मी, सर्दी, दबाव और शरीर के हर हिस्से में दर्द सहित संवेदनाओं की पूरी श्रृंखला को समझने में सक्षम हो जाता है।
गर्भवती स्त्रियां शरीर को ठंडा कैसे रखें
क्लाइमेट चेंज के कारण बढ़ी हुई गर्मी के दौरान गर्भवती स्त्री को शरीर को ठंडा और हाइड्रेटेड रखना जरूरी हो जाता है।
इसके लिए गर्भवती महिलाओं को पूरे दिन पानी पीना चाहिए और गर्मी के संपर्क में कम रहना चाहिए। तापमान बहुत अधिक होने पर सूर्य के सीधे प्रकाश में आने से बचें। ढीले-ढाले और हवा आने-जाने वाले कपड़े पहनें। कई बार स्नान करके शरीर के तापमान को नियंत्रित करें। एक्सरसाइज कम करें। सीमित पोर्शन के साथ ज्यादा बार खाना खाएं। आराम करें।