कुछ बच्चे कुछ समय तक ही खेलने में संतुष्ट रहते हैं, जबकि कई बच्चे दो मिनट भी शांत नहीं बैठ पाते। ये सिर्फ उसकी ऊर्जा नहीं, बल्कि रोग का संकेत हो सकते हैं। संकेत हो सकते हैं एडीएचडी के। आपका बच्चा एडीएचडी से पीड़ित है या नहीं इस बात का पता आपको कुछ संकेतों व डॉक्टर के पास जाने से चल सकता है।
क्या है एडीएचडी? (What is ADHD)
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर यानी एडीएचडी बच्चों को प्रभावित करने वाले सबसे आम मानसिक विकारों में से एक है। यह एक न्यूरो डेवलपमेंटल विकार है, जिससे पीड़ित बच्चों में ध्यान केंद्रित करने की कमी, आवेगशीलता और अतिसक्रियता के लक्षण पाए जाते हैं। ज्यादातर यह कुछ बदलावों से बचपन में ही ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी बड़े होने तक भी सक्रिय रहती है। ऐसे में बच्चों के विकास के लिए इसका समय पर निदान और उचित प्रबंधन बहुत जरूरी है। एडीएचडी के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं- संयुक्त प्रस्तुति, असावधान प्रस्तुति और अतिसक्रिय/आवेगपूर्ण प्रस्तुति।
कब होती है यह समस्या?
अक्सर एडीएचडी की समस्या प्री-स्कूल या केजी तक के बच्चों में देखी जाती है। कुछ बच्चों में किशोरावस्था में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है तो कई बार यह समस्या वयस्कों को भी परेशान करती है। एडीएचडी से पीड़ित बच्चे में असावधानी और अतिसक्रियता, दोनों के लक्षण होते हैं। यानी बिना अनुमति के दूसरों का सामान ले लेना या उनके काम में बाधा डालना। साथ ही दूसरों की बात न सुनना, बिना वजह चिल्लाना और बस अपनी बातों को ऊपर रखना इनकी आदत बन जाती है।
मां-बाप के लिए संकेत
बच्चा किसी भी कार्य पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता।
हमेशा अत्यधिक ऊर्जा से भरा रहता है और शांत नहीं बैठ पाता।
बच्चा अक्सर अपने काम को शुरू तो करता है, लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाता।
बच्चा दूसरों के साथ खेलते समय समस्याएं दिखा सकता है, जैसे- दोस्तों से झगड़ा करना, उनकी बात न सुनना या खेल के नियमों का पालन न करना।
एडीएचडी प्रबंधन और इलाज (ADHD Treatment)
एडीएचडी का उपचार एक योग्य चिकित्सक या मनोचिकित्सक ही कर सकता है। इसके लिए डॉक्टर परिवार का इतिहास, गर्भावस्था और प्रसव के दौरान की जानकारी, बच्चे के शुरुआती विकास, शिक्षा, सामाजिक संबंध और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की जानकारी लेते हैं, जिससे पता लगाया जा सके कि समस्या आनुवांशिक तो नहीं है। इसके बाद इन जानकारियों के जरिए उसे आत्मनियंत्रण और सकारात्मकता का गुण सिखाया जाता है, जिससे बच्चा सामाजिक और शैक्षिक समस्याओं का सामना कर पाने में समर्थ बने।
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मनोचिकित्सक का क्या कहना है?
दिल्ली में मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. ओम प्रकाश का कहना है कि एडीएचडी का सही समय पर निदान और प्रबंधन बच्चों के शैक्षिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में मदद कर करता है। बच्चे में एडीएचडी के लक्षण दिखाई देते हैं तो समय रहते विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें। सही इलाज और पारिवारिक सहयोग बच्चे के लिए बहुत जरूरी है।
एडीएचडी के प्रबंधन में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। माता-पिता को बच्चे के सकारात्मक पहलुओं को प्रोत्साहित करना चाहिए और उसके व्यवहार को समझने का प्रयास करना चाहिए। स्थिर और समर्थनकारी वातावरण बनाना बच्चे के आत्मविश्वास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षकों को बच्चों के लिए संरचित और शांत वातावरण बनाना चाहिए, जहां बच्चा सुरक्षित महसूस करे।