Periods in Girls: कुछ सालों पहले तक लड़कियों में यौवन (Puberty) शुरू होने की औसत उम्र 11 साल थी। इसका मतलब है कि 11, 12 या 13 साल की उम्र तक उनके पीरियड्स होना शुरू हो जाते थे। लेकिन, बीते कुछ सालों में लड़कियों में प्यूबर्टी काफी कम उम्र में ही शुरू हो जाती है। यानी यह ऐज 11 साल से घटकर ये उम्र 8 साल हो गई है। इसका कारण गुरुग्राम के क्लाउडनाइन अस्पताल की वरिष्ठ गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर अंशिका लेखी ने बताया है।
डॉक्टर अंशिका का कहना है कि अगर Puberty समय से पहले हो जाए तो इसे प्रीकोशियस प्यूबर्टी (Precocious puberty) कहते हैं। इसी वजह से मेंस्ट्रुअल साइकिल भी जल्दी शुरू हो जाता है और पीरियड्स आने लगते हैं। ऐसा होने का पहला कारण है- मोटापा। आजकल बच्चे एक्सरसाइज कम रह रहे हैं, हाई कैलोरी डाइट अधिक खा रहे हैं, जिससे उनके शरीर में फैट इकट्ठा होने लगता है।
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प्यूबर्टी का दूसरा कारण
दरअसल, मेंस्ट्रुअल साइकिल (MC) को एस्ट्रोजन नाम का हॉर्मोन (Estrogen Hormone) कंट्रोल करता है। वैसे तो ये हॉर्मोन ओवरी में बनता है, लेकिन शरीर के फैट सेल्स भी थोड़ी मात्रा में एस्ट्रोजन बनाते हैं। ऐसे में जब शरीर से फैट जमा होता है तो एस्ट्रोजन का लेवल भी बढ़ जाता है। इससे प्यूबर्टी समय से पहले हो जाती है।दूसरा कारण है- जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड खाना। इस तरह के खाने में अनहेल्दी फैट और शुगर अधिक होती है। इससे हमारे हॉर्मोन्स का बैलेंस गड़बड़ा जाता है। एस्ट्रोजन का लेवल बढ़ने लगता है और प्यूबर्टी जल्दी होती है।
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उन्होंने बताया कि प्यूबर्टी जल्दी होने में जीन्स का भी अहम रोल होता है। अगर किसी लड़की के परिवार की महिलाओं को समय से पहले प्यूबर्टी होती रही है तो उस लड़की को भी अर्ली प्यूबर्टी होने का चांस अधिक है। ऐसी बच्चियों में पीरियड्स जल्दी होते हैं। कुछ खास केमिकल्स के संपर्क में आने से भी प्रीकोशियस प्यूबर्टी हो सकती है। जैसे-बिस्फेनॉल ए और थैलेट्स। ये केमिकल प्लास्टिक की बोतलों और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स में पाए जाते हैं। इनसे शरीर का एंडोक्राइन सिस्टम गड़बड़ा जाता है।
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ये सावधानियां बरतनी चाहिए
डॉक्टर अंशिका लेखी ने बताया कि एंडोक्राइन सिस्टम शरीर की कई ग्रंथियों का एक नेटवर्क है। ये हॉर्मोन बनाने के साथ उसे रिलीज करता है. जब ये सिस्टम गड़बड़ाता है तो रिप्रोडक्टिव सिस्टम के विकास पर भी असर पड़ता है, जिससे पीरियड्स जल्दी होते हैं।अगर आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तो उसे हेल्दी डाइट दें। बाहर की चीज़ें कम से कम खिलाएं। उसे जो भी खाना है, वो घर पर बनाएं, जिससे उसका वजन ज्यादा न बढ़े। साथ ही प्रोडक्ट्स खरीदते समय लेबल जरूर चेक करें। अगर उनमें बिस्फेनॉल ए और थैलेट्स हैं तो उन्हें न खरीदें। बच्चों के एक्सरसाइज करने पर जरूर जोर दें।