वैसे याददाश्त कमज़ोर होना, चीजों को रखकर भूल जाना और अकेले ज्यादा वक्त गुज़ारना, बढ़ती उम्र में दिखाई देने वाले ये लक्षण डिमेंशिया की ओर इशारा करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि सुनने की क्षमता कम होना भी डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकता है। उम्र के साथ लोगों में देखने के साथ-साथ सुनने की क्षमता भी कम होने लगती है। हाल ही में आई एक रिसर्च बताती है कि हियरिंग लॉस डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकती है।
हियरिंग लॉस और डिमेंशिया के जोखिम पर क्या कहती है रिसर्च
अमेरिकन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अनुसार, US में 12 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों की एक तिहाई जनसंख्या की सुनने की क्षमता काफी कम है। इसी वजह से वे सोशल आइसोलेशन, डिमेंशिया, डिप्रेशन और डिसएबिलिटी का शिकार हो जाते हैं।
एनआईएच की एक अन्य स्टडी के मुताबिक, 130 प्रतिभागियों ने 2003 और 2005 के बीच हियरिंग परीक्षण करवाया। उसके बाद साल 2014 और 2016 के बीच उनका एमआरआई स्कैन भी किया गया। जिससे पता चला कि श्रवण हानि मस्तिष्क में आने वाले बदलावों से जुड़ी होती है।
जानें सुनने और मस्तिष्क स्वास्थ्य का संबंध
हमारे सेंसरी ऑर्गन ब्रेन से जुड़े होते हैं और मस्तिष्क ध्वनियों को पहचानकर हम तक पहुंचाता है। लेकिन अगर ब्रेन ठीक से अपना काम नहीं कर पा रहा है, तो उसका असर सुनने की क्षमता पर पड़ता है।
इस बारे में एमपीटी न्यूरो और वेलनेस कोच पूजा मलिक ने बताया कि तनाव हमारे जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करता है। कई बार तनाव के चलते हियरिंग लॉस और डिमेंशिया का खतरा बढ़ने लगता है। दरअसल, सेंसरी लॉस के चलते कोई भी सेंसेशन ब्रेन तक नहीं पहुंच पाती है। बढ़ती उम्र के साथ ब्रेन में टिशु डिजनरेट होने लगते हैं। ऐसे में हियरिंग समस्या बढ़ने की संभावना होती है। जो डिमेंशिया का कारण बनती है।
ब्रेन फंक्शन होता है प्रभावित
सुनने की क्षमता कम होने के चलते वे लोगों की बातों को सुनने और उनसे अन्य लोगों के समान बात करने में असमर्थ हो जाते हैं। इसके चलते उनका सोशल सर्कल धीरे -धीरे कम होने लगता है। वे वर्बल और इमोशनल जानकारी से चूकने लगते हैं, इसका असर सीधा दिमाग पर पड़ने लगता है। जो डिमेंशिया के खतरे को बढ़ाता है। सामाजिक संपर्क में कटौती के अलावा अत्यधिक धूम्रपान और निष्क्रियता भी डिमेंशिया का मुख्य कारक है।
मस्तिष्क का कार्य इस तरह होता है प्रभावित
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, मिडलाइफ़ में डिमेंशिया के 9 फीसदी मामलों में न सुनने की समस्या पाई जाती है। आंकड़ों की मानें, तो दुनिया भर में 47 मिलियन लोग इस समसया से जूझ रहे है। वहीं जर्नल ऑफ अल्जाइमर डिज़ीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वो व्यक्ति जो सुनने में सक्षम नहीं है। उन्होंने मस्तिष्क के चार मुख्य लोब्स में से एक टेम्पोरल लोब के ऑडिटरी एरिया और भाषा प्रसंस्करण से जुड़े फ्रंटल कॉर्टेक्स के भाषा से जुड़े क्षेत्रों में सामान्य अंतर प्रदर्शित किया।
इससे इस बात की जानकरी पाई गई कि सुनने की शक्ति कम होने मस्तिष्क के क्षेत्रों में परिवर्तन आने लगता है। साथ ही मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में भी जो किसी कार्य पर फोकस करने में हमारी मदद करते हैं। यूसी सैन डिएगो हर्बर्ट वर्टहेम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रमुख जांचकर्ता लिंडा के मैकएवॉय ने कहा ध्वनियों को समझने की कोशिश में शामिल अतिरिक्त प्रयास मस्तिष्क में परिवर्तन पैदा कर सकते हैं जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन के एक शोध के अनुसार, वे लोग जो थोड़ा कम सुनते हैं। उनमें नॉर्मल हियरिंग पावर वाले लोगों के मुकाबले ब्रेन टिशु जल्दी नष्ट होने लगते हैं। वे लोग जो सुनने की सुस्या से जूझ रहे हैं। उन्हें सालाना अपनी हियरिंग पावर को चेक करवाना चाहिए। दरअसल, उपचार न करवाने पर न सुनने की क्षमता साउंडस को याद रखने की ताकत को कम कर देती है। इससे सुनने वाली तंत्रिकाओं के कार्य में बाधा आने लगती है। इससे ब्रेन को पूरी तरह से मैसेज नहीं मिल जाता है। जो डिमेंशिया का कारण बन जाता है।
इन बातों का विशेष ध्यान रखें
अपने एजिंग पेरेंट्स के स्वास्थ्य का ख्याल रखते समय समय-समय पर उनकी श्रवण क्षमता पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है। अगर वे लगातार ऊंचा सुनने का अनुभव कर रहे हैं, तो आवश्यक है कि डॉक्टर से मिलकर उन्हें हियरिंग एड दी जाए। इसके साथ यह भी जरूरी है कि उनको सोशली कनेक्ट रखा जाए। ताकि वे किसी भी तरह अपने आप को अकेला महसूस न करें।