एक रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया है कि पुरुषों में शुक्राणुओं की घटती संख्या का कारण मानव अंडकोष में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक हो सकते हैं। “द गार्डियन” की रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने हर जांचे गए नमूने में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पाया।
वैज्ञानिकों ने जो अध्ययन किया, उसका शीर्षक था ‘कुत्ते और मानव के वृषण में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी, शुक्राणुओं की संख्या, वृषण और एपीडीडिमिस के वजन के साथ इसका संभावित संबंध’। इस शोध में ऊतक के नमूनों को घोलकर उनमें मौजूद प्लास्टिक का विश्लेषण किया गया।
संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यू मेक्सिको विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में 23 मानव और 47 कुत्तों के वृषणों का परीक्षण किया गया। यह शोध 15 मई को टॉक्सिकोलॉजिकल साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक और लेखक न्यू मेक्सिको विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जिओझोंग यू ने “द गार्डियन” को बताया कि वह इस खोज से हैरान थे। उन्होंने कहा, “शुरुआत में मुझे शक था कि क्या माइक्रोप्लास्टिक प्रजनन प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं। जब मुझे पहले कुत्तों के परीक्षण के नतीजे मिले तो मैं हैरान हो गया था। इंसानों के परीक्षण के नतीजे मिलने पर मैं और भी ज्यादा हैरान था।”
शुक्राणुओं की संख्या पर प्रभाव
इसके नमूने न्यू मैक्सिको के मेडिकल इन्वेस्टिगेटर कार्यालय से लिए गए थे, जो नियमित रूप से मानव अंडकोष एकत्र करता है। नमूनों का विश्लेषण सात साल के भंडारण के बाद किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, अध्ययन में शामिल मानव अंडकोषों को संरक्षित किया गया था, इसलिए उनके शुक्राणुओं की संख्या को मापा नहीं जा सका। हालांकि, कुत्तों के वृषणों में पीवीसी के अधिक संदूषण वाले नमूनों में शुक्राणुओं की संख्या कम पाई गई।
अध्ययन ने माइक्रोप्लास्टिक और कम शुक्राणुओं की संख्या के बीच “संभावित संबंध” का संकेत दिया, जबकि यह भी कहा गया कि इस सिद्धांत की पुष्टि के लिए और शोध की आवश्यकता है।
प्रोफेसर यू ने शुक्राणुओं की संख्या पर संभावित प्रभाव के बारे में कहा, “पीवीसी बहुत सारे रसायन छोड़ सकता है जो शुक्राणु बनने की प्रक्रिया में दखल देते हैं और इसमें ऐसे रसायन भी होते हैं जो हार्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं।”
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गौरतलब है कि पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या दशकों से घट रही है और इसके लिए अक्सर कीटनाशकों सहित रासायनिक प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि, हाल ही में मानव रक्त, प्लेसेंटा और स्तन के दूध में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं, जो व्यापक संदूषण का सुझाव देते हैं। हालांकि स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों को पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन प्रयोगशाला अध्ययनों में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पर्यावरण पर प्रभाव
अध्ययन में कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक सर्वव्यापी हैं, जो माउंट एवरेस्ट की चोटी से लेकर समुद्र की गहराई तक पाए जाते हैं और लोग रोजाना इन कणों को निगलते हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक फिर ऊतकों में जमा हो सकते हैं और सूजन पैदा कर सकते हैं या प्लास्टिक में मौजूद रसायन उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च में डॉक्टरों ने रक्त वाहिकाओं में सूक्ष्म प्लास्टिक को स्ट्रोक, दिल का दौरा और जल्दी मौत के उच्च जोखिम से भी जोड़ा था।
अध्ययन में क्या पाया गया
मानव अंडकोष में कुत्तों के अंडकोष में पाए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा से लगभग तीन गुना अधिक पाया गया: 330 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम ऊतक बनाम 123 माइक्रोग्राम। प्लास्टिक की थैलियों और बोतलों में इस्तेमाल होने वाली पॉलीथीन सबसे आम माइक्रोप्लास्टिक थी, इसके बाद पीवीसी का स्थान रहा।
शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक की व्यापक उपस्थिति मानव प्रजनन स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव को लेकर चिंता पैदा करती है। उन्होंने कहा कि पीवीसी ऐसे रसायन छोड़ता है जो शुक्राणु बनने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं और हार्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मानव प्रजनन प्रणाली के भीतर माइक्रोप्लास्टिक और शुक्राणु की गुणवत्ता पर इसके प्रभाव पर सीमित शोध मौजूद है।
गौरतलब है कि चीन में 2023 के एक छोटे से अध्ययन में भी छह मानव अंडकोष और 30 वीर्य के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। हाल के चूहों पर किए गए अध्ययनों से यह भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक शुक्राणुओं की संख्या को कम कर सकते हैं और असामान्यताएं और हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं।